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तिलकमंजरी में वर्णित सामाजिक व धार्मिक स्थिति
तथा एकादश शती में सर्वाधिक प्रचलित सम्प्रदाय जैन तथा शैव थे । इनके अतिरिक्त वैष्णव धातुबादी, वैखानस तथा नैष्ठिक सम्प्रदायों के उल्लेख भी मिलते हैं । अब इनका विस्तार से वर्णन किया जायेगा ।
जैन सम्प्रदाय
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धनपाल ने तिलकमंजरी की रचना जैन धर्म में दीक्षित होने के पश्चात् की थी, अत एक प्रेम कथा होते हुए भी तिलकमंजरी की रचना जैन धर्म व दर्शन की पृष्ठभूमि को आधार बनाकर की गयी है । प्ररम्भ में ही धनपाल ने संकेत दे दिया है कि जैन सिद्धान्तों में कही गयी कथाओं के विषय में राजा भोज के कुतूहल को शांत करने के लिए उसने इस कथा की रचना की । अतः विशुद्ध रूप से धर्म-कथा न होते हुए भी, जैन धर्म के प्रचार व प्रसार का इसका लक्ष्य स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है । तिलकमंजरी जैन धर्म सम्बन्धी निम्नलिखित उल्लेख प्राप्त होते हैं
तीर्थंकर - तिलकमंजरी का प्रारम्भ 'जिन' की स्तुति से किया गया है । 2 तत्पश्चात् नाभिराजा के पुत्र आदिनाथ नामक प्रथम तीर्थंकर की स्तुति पद्यद्वय में की गयी है | आदिनाथ के पौत्र नमि विनमि उनके पार्श्व में वर्णित किये गये हैं । प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे । धनपाल के समय में ऋषभदेव प्रिय तीर्थंकर । ऋषभदेव को त्रिकालदर्शी धर्मतत्व के उपदेशक संसार सागर के सेतु, चतुविध देवसमूह के उपास्य, गणधर केवलियों में श्रेष्ठ कहा गया है । ऋषभदेव के समवसरण का उल्लेख किया गया है ।" जैन शास्त्रों के अनुसार तीर्थंकर को केवलज्ञान होने के पश्चात् इन्द्र कुबेर को आज्ञा देकर एक विराट सभा मण्डप का निर्माण कराता है, जिसमें तीर्थंकर का उपदेश होता है। इसी सभा मण्डप को समवसरण कह जाता है । एक अन्य स्थल पर ऋषभदेव की मूर्ति का सजीव वर्णन किया गया है ।
ऋषभदेव के पश्चात् महावीर की स्तुति की गयी है । एक अन्य प्रसंग में महावीर की मूर्ति का वर्णन है । महावीर की पक्ष - पर्यन्त मंगल-स्नानायात्रा मनाये
1. तिलकमजरी, पद्य 50
2.
वहीं, पद्य,
2
3.
तिलकमंजरी, पद्य 3, 4
4.
वही, पृ. 39
5. वही, पृ. 1, 218, 226 6. वही, पृ. 216, 217 7. वही, पद्य 6
8. वही, पृ. 275