Book Title: Tilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Pushpa Gupta
Publisher: Publication Scheme

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Page 237
________________ तिलकमंजरी में वर्णित सामाजिक व धार्मिक स्थिति लेखन के लिए स्याही के अतिरिक्त धातु-द्रव गैरिक-रस कस्तूरी द्रव प्रयुक्त किया जाता था । समरकेतु को प्राप्त हरिवाहन का लेख ताडपत्र पर धातु-द्रव से लिखा गया था, जिसे सुनहरी धूल सुखाया गया था 12 लेखन के लिए लेखनी प्रयुक्त होती थी जिसे वर्णिका कहते थे । सोने की लेखनी का उल्लेख किया गया है । 2 लेखनी के अभाव में नखाग्र से भी पत्र लिखने का उल्लेख है । एक अन्य प्रसंग में कपड़े में गांठ लगाकर उससे लेख लिखे जाने का उल्लेख किया गया है । 4 227 पत्र - तिलकमंजरी में पत्र - लेखन, पत्र - प्रेषण तथा पत्र प्राप्ति का अनेक प्रसंगों में उल्लेख है 15 मंजीर नामक बंदीपुत्र को कामदेवायतन में आम्रवृक्ष के नीचे ताडपत्र पर लिखित एक पत्र प्राप्त हुआ था, जो किसी कन्या द्वारा अपने प्रेमी को लिखा गया प्रेम पत्र था । इसे मृणालसूत्र से बांधा गया था, इसके दोनो ओर चन्दनद्रव की वेदिकाकृति बनी हुई थी । यह कस्तुरी की स्याही से लिखा गया था । लेखक ने अपना नाम सूचित नहीं किया था ।" अन्य पत्र कुशल समाचार सूचक हैं । इनमें पत्र के प्रारम्भ में स्वस्ति तथा अन्त में अपना नाम लिखा जाता था. 17 पुस्तकें :- तिलकमंजरी में दो स्थानों पर पुस्तकों का उल्लेख है । समरकेतु ने तारक को द्वीपान्तर विजय से प्राप्त ताडीपत्र पर लिखित पुस्तकों को पंडितों में योग्यतानुसार बांट देने का आदेश दिया था । इससे ज्ञात होता है कि युद्ध में जीते गये देश से लूटकर लाई हुई पुस्तकें पंडितों में उनकी योग्यता के अनुसार बांट दी जाती थी । समरकेतु की द्विपान्तर यात्रा के प्रसंग में ही पुस्तकों का मौर उल्लेख है । इस वर्णन से तत्कालीन हस्तलिखित ग्रन्थों के रखरखाव के विषय में महत्वपूर्ण 1. (क) नूतने ताडीपत्रशकले निहितसान्द्रधातुद्रवाक्षरों यथा चावचूर्णितोक्षोदीयसा स्वर्णरेणुनिक रेण.............. तिलकमंजरी, पृ 196 (ख) गैरिकरसेन.....सुरेखाक्षरं लिखित्वा.... वही, पृ. 349 2. ज्येष्ठवरणका रूपजातरूपस्य, वही, पृ. 22 3. गैरिकरसेन.... ताडीतरूदले कराङ्ग ुलिनखाग्रलेखन्या सुरेखाक्षरं लिखित्वा .... 4. प्रत्यग्रलिपिना दिव्यपटपल्लवग्रन्थलेखेन... —वही, पृ. 344 5. वही, पृ. 108, 173, 193, 196, 338, 349, 39, 6. वही, पृ. 108-109 7. प्रवितर अवलोक्य पृष्ठेऽस्य लब्धप्रतिष्ठानि कुमारनामाक्षराणि वही, पृ. 193 प्रशस्तताडीपत्र विन्यस्तलोचनले हृयलिपिविशेषाणि पिण्डीकृत्य पण्डि - तेभ्यः समस्तानि पुस्तकरत्नानि, तिलकमंजरी पृ. 291 8. ...

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