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तिलकमंजरी का साहित्यिक अध्ययन
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पर्याय
तिलकमंजरी में शब्दों की अपार राशि बिखरी पड़ी है, जिनको मिलाकर एक कोष बनाया जा सकता है, यह धनपाल के गहन अध्ययन का परिणाम है। धनपाल ने एक संस्कृत-नाममाला भी रची थी, किन्तु वह प्राप्त नहीं होती, केवल उसका उल्लेख प्राचीन ग्रन्थ सूची में मिला है। हेमचन्द्र ने तो 'व्युत्पत्तिर्धनपालतः' कहकर उसकी प्रशंसा की है । धनपाल की शब्द-सामर्थ्य को प्रदर्शित करने हेतु सूर्य चन्द्रमा, शिव, कामदेव, समूह तथा ध्वनि शब्दों के पर्याय तिलकमंजरी से संग्रहीत किये गये हैं। तिलकमंजरी में प्रायः इनका सर्वत्र प्रयोग होने से पृष्ठ संख्या का उद्धरण नहीं दिया गया है
___(1) सूर्य-वासरमणि, सप्तसप्ति, दिनकर, भास्वत्, गमस्तिमालिन्, अहिमांशु, खरांशु, अर्क, ग्रहग्रामणी, हरिदश्वः,भास्कर, मरीचिमालिन्, चण्डाशु, तिग्मांशु, उष्णदीधिति, तपन्, दिनेश, रवि, अनूरुसारथि, ब्रह्म, अरुणसारथि, अनूरू, अरुण, पतंग, सूर्य, उष्णरश्मि, तिग्मभानुः, मित्रम, दिवसकर, ललाटन्तप, दिबसमणि, तरणि, घुमणि, चण्डदीधिति, अहिमगभस्तिम् ।
(2) चन्द्रमा-हिमकर, अमृतकर, शशधर, निशीथ, हरिणलांछन, श्वेतकिरण, मृगांक, इन्दु, शशि, चन्द्र, ऋक्षपति, रजनिजानि, नक्षत्रनाथ, ग्रहपति, सितांशु, राजा, हरिणांक, एणांक, शशांक, निशाकर, हिमगमस्तिन्, हिमांशु, सुधांशु, शीतरश्मि, तारकाराज।
(3) शिव-हर, स्थाणु, रूद्र, शुलपाणि, भैरव, मृगांकमौलि, विषमाक्ष, विशालाक्ष, ईशान, शिपिविष्ट, शिव, खण्डपरशु, त्रयम्बक, धूर्जटि, गजदानवारि, शूलायुध, अन्धकाराति, क्रीडाकिरात ।
(4) कामदेव-अनंग, कामदेव, कन्दर्प, कुसुमबाण, मनसिशय, कुसुमेषु, कुसुमायुध, मानसभू, मकरलक्ष्मा, मकरध्वज, कुसुमसायक, मदन, संकल्पयोनि, मन्मथ, कुसुमधनुष, स्मर, मार, मनोभव, मनसिज, पंचेषु, चित्तयोनि, प्रद्य म्न, कुसुमकामुर्क, विषमबाण, स्मरणयोनि, अयुग्मेषु, विषमसायक, रतिभर्तु, रतिपति, मीनध्वज ।
(5) समूह-ग्राम, निकर, प्रकर, कलाप, चक्र, श्रेणि, मण्डल, वर्ग, गण, वात, पटल, निवह, जाल, सार्थ, सन्तान, राशि, व्रज, संहति, विसर, वृन्द, संघात, समाज, कुल, चक्रवाल, संघ, निकाय, कदम्ब, जाति, औघ, पैटक ।
(6) ध्वनि-ध्वान, रव, रणित, शिंजित, बबणित, स्वन, गुंजन, आख चीत्कार, मुखरित, निर्धोष, स्तनित, घर्घर, झात्कार, निनाद, निनद, नाद, हाहाख, क्वाण, झंकार, भांकृत, किलकिलाख, कोलाहल, हित, हृषित, चीत्कृत, कडत्कार, सूत्कार, धूत्कार, टंकृत, गजित ।