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तिलकमंजरी, का सांस्कृतिक अध्ययन
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___ नाट्य-दर्शन राजाओं एवं साधारण जनता के मनोरंजन का विशिष्ट अंग था ।1 अयोध्या के नागरिकों को नाट्यशास्त्र में अभ्यस्त कहा गया है । राजप्रासाद की उर्वभूमिका में स्थित चन्द्रशाला में नाट्यशाला अथवा रंगशाला का निर्माण किया जाता था. जिनमें विभिन्न अवसरों पर नाटकों का आयोजन किया जाता था, जिनमें कभी-कभी अन्य देशों के राजा भी आमन्त्रित होते थे।
पत्रच्छेद
वात्स्यायन के कामसूत्र में 64 कलाओं में पत्रच्छेद जिसे विशेषकच्छेय कहा गया है, की भी गणना की गयी है। पत्तों में कैंची से भांति-भांति के नमूने काटना पत्रच्छेद है। इसे ही पत्रवल्ली. पत्रभंग, पत्रलता, पत्रांगुली कहा जाता था । स्त्रियों के कपोल-स्थल अथवा स्तनों पर फूल-पत्तियों की चित्रकारी पत्रवल्ली, पत्रभंग अथवा पत्रांगुली कहलाती थी । तिलकमंजरी में इनका अनेक स्थलों पर उल्लेख आया है । तिलकमंजरी के कपोल स्थल पर कस्तूरी-द्रव से पत्रांगुली रचना की गयी थी, जो स्निग्ध नीली अलकलता के प्रतिबिम्ब सी जान पड़ती थी। तिलकमंजरी ने अन्य कलाओं के साथ पत्रच्छेद में भी निपुणता प्राप्त की
1. वही, पृ. 10, 41, 57, 270, 292, 372, 399 2. वही, पृ. 10 3. वही, पृ. 57, 61, 391 4. .."उन्नतप्रासादशिखरचन्द्रशालायां रचितरंगभूमिस्वरेषु द्रष्टुमागताना
मष्टादशद्वीपनेदिनीपतीनां दर्शयति दिव्य प्रेक्षाविधिम् । -वही, पृ. 57 (क) कामिनीकुचमितिष्वनेकभंगकुटिलाः पत्रांगुलीरकल्पयत् ।
-तिलकमंजरी, पृ. 18 (ख) रिपुकलत्रकपोलपत्रवल्ली....
-वही, पृ. 5 (ग) कामिनीकपोलतलामिव पत्रलतालीकृतच्छायम्, -वही, पृ. 211 (घ) कण्टकिनि पत्रच्छेदविरचन देवताचंनकेतकदले न कपोलतले,
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-वही, पृ. 32 (ङ) उल्लसितविरलस्वेदाम्बुकणकर्बुरीकृत कपोलपत्रभंगाम्,
-वही पृ. 270 6. स्वच्छकान्तिना कपोलयुगलेन""कुरंगमदपत्रांगुलीरूद्धहम्तीम्,
-वही, पृ. 247