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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
ठंड से बचाव के लिए पुराने जीर्ण वस्त्रों को सिल कर गद्दा बना लेते थे, जिसे वे
ओढ़ने और बिछाने के काम में लेते थे। समरकेतु के शिविर-लोक के कोलाहल के प्रसंग में कन्था का उल्लेख किया गया है । सैनिक के हाथ से छूटकर कन्था समुद्र में गिर गयी तथा तिमिंगल मत्स्य द्वारा निगल ली गयी, अत: दूसरा सैनिक कहता है कि अब शीत ऋतु में ठंड से ठिठुरना। प्रावरण
शीत से बचाव के लिए ओढ़ने की चादर को प्रावरण कहा जाता था। प्रावरणका तीन बार उल्लेख है। उत्तरच्छवपट
उत्तरच्छदपट बिछाने की चादर के लिए प्रयुक्त हुआ है। इसके लिए मास्तरण तथा प्रच्छदपट शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं । धुले हुए नेत्रवस्त्र की चादर समरकेतु के शयन पर बिछी थी मेघवाहन के विद्रुमपर्यक पर श्वेत दुकुल की चादर बिछायी गयी थी। प्रसेविका
थेली अथवा पोटली को प्रसेविका कहा जाता था। गन्धर्वक उत्तम चीनी वस्त्र की थैली में तिलकमंजरी का चित्र लाया था । उत्तम कपड़े की थैली में ताम्बूल के बीड़ों की टोकरी रखी गयी थी। विस्तारिका
विस्तारिका बड़ी गद्दी को कहते थे। नेत्र वस्त्र से निर्मित गद्दी का उल्लेख किया गया है।
1. सा स्थवीयसी कन्था मलितमात्रैव करतलाद्विलिता तिमिगिलेन गललग्न हस्तेन मर्तव्यमधुना हिमों शीतेन ।
-वही, पृ. 139 2. वही, पृ 106, 292, 337 3. तिलकमंजरी, पृ. 70, 177 4. वही, पृ. 75, 174, 276, 367 5. वही, पृ. 276 6. मृदुदुकूलोत्तरच्छदम्........... वही, पृ. 70 7. प्रकृष्टचीनकर्पटप्रसेविका............वही, पृ. 164 8. वही, पृ. 165 9. नेत्रविस्तारिकायामुपविष्ट........ . वही, पृ. 323