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तिलकमंजरी में वर्णित सामाजिक व धार्मिक स्थिति
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परस्पर विनोद तथा कामदेव के पूजन का । तिलकमंजरी में दोनों ही रूपों का 'वर्णन है । हर्ष की रत्नावली नाटिका में इसका अत्यन्त सजीव वर्णन किया गया है। भवभूति ने भी मालतीमाधव नाटक में मदनोत्सव का स्निग्ध चित्र खींचा हैं।
कौमुदीमहोत्सवः- कांची नगरी के नागरिकों द्वारा कौमुदीमहोत्सव मनाये जाने का उल्लेख किया गया है। वात्स्यायन के कामसूत्र में कौमुदीजागरण अर्थात् चांदनी रात में जागकर क्रीड़ा करने का उल्लेख है। कौमुदीमहोत्सव से यही अभिप्राय जान पड़ता है। डॉ. हजारीप्रसाद ने प्राचीन भारतवर्ष में मनाये जाने वाले ऋतु सम्बन्धी उत्सवों में दो प्रमुख उत्सवों की गणना की हैवसन्तोत्सव तथा कौमुदी महोत्सव । कौमुदीमहोत्सव शरदऋतु में मनाया जाता था।
- दीपोत्सवः- समरकेतु द्वारा वर्णित आयतन के प्रसंग में दीपोत्सव का उल्लेख किया गया है । मदिर के शिखर भाग में जड़े हुए पद्मराग कलशों की दीप्ति से मानों असमय में दीपोत्सव आयोजित हो रहा था । आज भी दीपावली का उत्सव सम्पूर्ण भारतवर्ष में पूर्ण उत्साह के साथ मनाया जाता है । कृषि तथा पशुपालन व्यापार, समद्री व्यापार, सार्थवाह, कलान्तर, न्यासादि
कृषि तथा पशुपालन:- समरकेतु के प्रयाण के समय ग्रामीणों के वर्णन में कृषि सम्बन्धी अनेक उल्लेख आये हैं। ग्रामपति की पुत्री का सान्निध्य प्राप्त होने पर ग्रामीण, सैनिकों द्वारा खलिहान से ले जाये जाते हुए समस्त बुस (यवादिखान्य) को बुस (भूसा) समझकर उसकी अवहेलना कर रहे थे । कुछ ग्रामीण
1. द्विवेदी, हजारीप्रसाद, प्राचीन भारत के कलात्मक मनोरजन, पृ. 106-107 2. हर्षदेव रत्नावली, प्रथम अंक, पद्य 8-12 3. भवभूति, मालतीमाधव 4. सर्वान्तःपुरपरीता शुद्धान्तसौधशिखरात्पुरजनप्रवर्तितं कौमुदीमहोत्सवमवलोकयन्ती।
__ तिलकमंजरी, पृ. 271 5. - द्विवेदी, हजारीप्रसाद, प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद, . पृ. 106 6. ज्वलभिरूच्छिन्नः पद्मरागकलशः प्रकाशिताकालदीपोत्सवविलासम्....
-तिलकमंजरी, पृ. 154 7. खलधानतः साधनिलोकेन निखिलमपि नीयमान बुसंबुसाय मत्वावधिरयद्मिः ....
-वही, पृ. 119