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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
. वसन्तोत्सव-वसन्तोत्सव उस समय का एक बड़ा उत्सव था, जो बड़े धूमधाम से मनाया जाता था। तिलकमंजरी में वसन्तोत्सव का अनेक स्थलों पर उल्लेख किया गया है। यह उत्सव चैत्र मास की शुक्ल त्रयोदशी के दिन मनाया जाता था । चैत्र मास में होने के कारण इसे चैत्रोत्सव और चैत्रीयत्रा भी कहते थे। इस दिन प्रत्येक घर में रक्तांशुक वस्त्र की कामदेव की पताकाएं फहरायी जाती थी। नगर के निवासी सजधज कर कामदेव का यात्रोत्सव देखने नगरोद्यान में निर्मित कामदेव के मंदिर में जाते थे। इसका स्त्रियों के लिए विशेष महत्त्व था। आसन्न-विवाहा कुमारियों के लिए तो इसका अलग ही महत्त्व था।? अन्तःपुर में गीत तथा नृत्य की गोष्ठियां आयोजित की जाती थी। कामदेव मंदिर में विभिन्न प्रकार के मनोरंजक खेल दिखाये जाते थे, जिनमें कृत्रिम हाथी घोड़ों के खेल प्रमुख थे । विटजन एवं वैश्याएं रास नृत्य करते एवं परस्पर रंगभरी पिचकारियों से रंग खेलते थे। पानोत्सव मनाया जाता था।
युद्ध के प्रसंग में अनंगोत्सव की तिथि आने पर वज्रायुध द्वारा उत्सव मनाया गया था ।10 मृदंगों की ध्वनि के साथ पानोत्सव किया जाता था तथा स्त्रियों के मधुर गीतों को सुनते हुए रात भर मदन जागरण किया जाता था।
वस्तुतः मदनोत्सव फाल्गुन से लेकर चैत्र के महीने तक मनाया जाता था । इसके दो रूप थे, एक सार्वजनिक धूमधाम का तथा दूसरा अन्तःपुरीकारों के
1. अति हि महानुत्सवोऽयम्,
वही, पृ. 300 2. वही, पृ. 12 84 95 108 298 302 303 304 305 322 3. (क) मधुमासस्य शुद्धत्रयोदश्यामहमहमिका.... वही, पृ. 108
(ख) अद्यमदनत्रयोदशीप्रवृत्ता मन्मथायतने यात्रा.... वही, पृ. 298 4. वही, पृ. 302, 323, 5. वही, पृ. 12, 108 6. वही, पृ 298, 323 7. प्राराधनीयः सर्वादरेण सर्वस्यापि विशेषतः समुपस्थितासन्नपाणिग्रहण मंगलानां कुमारीणाम् ।
-वही, पृ. 300 8. प्रवृत्तासु निर्भरं गीतनृत्तगोष्ठीषु,
-तिलकमंजरी, पृ. 302 9. वही, पृ. 323-24, पृ. 108 10. एकदा वसन्तमये प्राप्ते च समागतायामनङ्गोत्सवतिथावतीते.... वही, पृ. 83 11. श्रूयमाणेष्वापानकमृदंगध्वनिषु शयनमंदिराङ्गण .. प्रारब्धमदनजागरस्य जायाजनस्य गीतकान्याकर्णयति।
-वही, पृ. 84