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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
जाती थी। संगीत, नृत्य चित्रकलादि कलाओं में पूर्ण दक्षता प्राप्त करना इनके लिए अनिवार्य था।
तिलकमंजरीकालीन समाज में स्त्रियों की स्थिति अत्यन्त सम्मानजनक थी। राजा मेघवाहन विद्याधरा मुनि को मदिरावती का परिचय प्रदान करते हुए कहता है कि इसी से हमारी त्रिवर्ग सम्पत्ति सिद्ध होती है, शासन-भार हल्का लगता है, भोग स्पृहणीय है, यौवन सफल है, उत्सव आनन्ददायक है, संसार रमणीय जान पड़ता है तथा इसी से गृहस्थाश्रम पालनीय है। राजा भी किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाने पर अपनी महारानी से ही परामर्श लेता था । कांची नरेश कुमुमशेखर ने मलयसुन्दरी के विषय में अपनी पत्नी गन्धर्वदत्ता से सलाह ली थी।
धनपाल ने अयोध्या नगरी के वर्णन में स्त्रियों के दो प्रमुख रूपों का वर्णन किया है-कुलवधूएं तथा वारवधूएं । कुलवधूएं सदा गृहकार्यों में निमग्न रहती थीं। वे गुरुजनों के वचनों का पालन करने वाली, स्वप्न में भी देहरी न लांघने वाली, शालीन, सुकुमार तथा पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली थीं। क्रोधित होने पर भी उनके मुख पर विकार उत्पन्न नहीं होता था, अप्रिय करने पर भी, वे विनय का साथ नहीं छोड़ती थी, कलह में भी कठोर वचनों का प्रयोग नहीं करती थीं।
धनपाल ने कुलवधूओं के रूप में स्त्री के जिस आचरण का प्रतिपादन किया है, वह भारतीय संस्कृति का आदर्श है । अतः वे कुलवधूएं मानों मूर्तिमती समस्त पुरुषार्थों की सिद्धियों के समान थीं।।
इसके विपरीत वाखनिताओं का आचरण वरिणत किया गया है । ये नृत्य गीतादि कलाओं में कुलक्रमागत निपुणता से पूर्ण होती थी। अपने एक कटाक्षपात से ही वे राजाओं का सर्वस्व हरण करने में समर्थ थीं। किन्तु वे केवल धन से ही नहीं अपितु गुणों से भी आकृष्ट होती थीं।
1. अनयास्माकमविकला त्रिवर्गसम्पत्तिः........गृहस्थाश्रमस्थितिः,
-तिलकमंजरी पृ. 28 2. एवं स्थिते कर्त्तव्यमूढ़े में हृदयमिदमपेक्षतेतवोपदेशम् । आदिश यदत्र सांप्रतंकरणीयम् ।
-वही पृ. 327 3. वही, पृ. 9-10 4. सततगृहव्यापारनिषण्णमानसामिः................कुलप्रसूताभिरलंकृता वधूमिः,
____ वही, पृ.9 6. इतरांभिरपि त्रिभुवनपताकायमानाभिः........साक्षादिव कामसूत्र विद्यामि
विलासिनीभिः............................... -वही, तिलकमंजरी पृ. 9-10