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तिलकमंजरी में वर्णित सामाजिक व धार्मिक स्थिति
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चारों आश्रमों का रक्षक था। मेघवाहन ने व्रत-पर्यन्त ब्रह्मचर्य का पालन किया था। गृहस्थाश्रम का अनेक बार उल्लेख हुआ है । अपनी पत्नी का भरणपोषण गृहस्थ व्यक्ति का धर्म कहा गया है । पत्नी द्वारा ही गृहस्थाश्रम की सिद्धि कही गयी है । अभ्यागत द्वारा दी गयी वस्तु को ग्रहण करना गृहस्थ के लिए अत्यन्त लज्जाजनक था, इसे दरिद्र गृहस्थ ही स्वीकार करता था । तिलकमंजरी में वानप्रस्थ आश्रम में स्थित वैखानसों का उल्लेख पाया है। जीवन की आधी अवधि समाप्त हो जाने पर राजा भी राज्य त्याग कर पत्नी सहित वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करते थे। पारिवारिक जीवन एवं विवाह
पारिवारिक जीवन में संयुक्त प्रणाली प्रचलित थी, जो गुरूजनों के प्रति आदर-सत्कार की भावना पर आधारित थी। गुरूजन जो भी करणीय अथवा अकरणीय कृत्य करते, उसका बिना विचार किये अनुसरण करना छोटों का कर्तव्य था । गुरुजन भी छोटों की मनोवृत्ति जानकर उनके अनुकूल ही कार्य करते थे।10
स्त्री का स्थानः-डॉ. अल्टेकर11 के अनुसार दसवीं शती में स्त्रियों की स्थिति बहुत सम्मानजनक थी। सम्भ्रान्त परिवारों में स्त्रियों को उच्च शिक्षा दी
1. रक्षिताखिलक्षितितपोवनोऽपि बातचतुरााश्रमः, -तिलकमंजरी, पृ. 13 2. गृहीतब्रह्मचर्यस्य दिवसाः कतिचिदतिजग्मुः ।। -वही, पृ. 35 3. स्वदारपरिपालनकर्म गृहमेधिनां धर्म :
-वही, पृ. 318 4. पालनीया गृहस्थाश्रमस्थितिः
-वही, पृ. 28 5. याचकद्विज इव कथं प्रतिग्रहमंगीकरोमि गृहाभ्यागतेनामुना दीयमानं दुर्गतं
गृहस्थ इव गृहनन्नपरं लघिमानमासादयिष्यामि.... -तिलकमंजरी, पृ. 44 6. तिलकमंजरी, पृ. 258, 329, 358 7. ततो धृताधिज्यधनुषि भुवनभारधारणक्षमे....गमिष्यति पश्चिमे वयसि वनम्
वही, पृ. 33 8. वही, पृ. 9, 300 9. यदेव गुरवः किंचिदादिशन्ति यदेव कारयन्ति कृत्यमकृत्यं वा तदेव निर्विचारे:
कर्तव्यम्, विचारो हि तद्वचनेष्वनाचारो महान् । -वही, पृ. 300 10. अविज्ञाय मच्चित्तवृतिम्....नरपतीनाम्....
-वही, पृ. 299 11. Altekar,A.S.; The Position of Women in Hindu Civilizat
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