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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
(3) परिधेय ओढ़ना या पहिनना-वस्त्रों की सजावट (4) विलेपन अनेक प्रकार के अंगराग, उबटन, तेल, इत्र आदि शरीर की सुन्दरता को बढ़ाने के लिए लगाना। इनके अतिरिक्त देश की भिन्नता या रुचि के अनुसार भी शृंगार कला प्रचलित थी' इसे दैशिक कहते थे। - अब हम तिलकमंजरी के संदर्भ में तत्कालीन प्रसाधन सामग्री, केशविन्यास तथा पुष्प-प्रसाधन का विवेचन करेंगे। प्रसाधन सामग्री
तिलकमंजरी में निम्नलिखित प्रसाधन सामग्री का उल्लेख प्राप्त होता है ।
(1) अगुरू (16), कालागुरू (8) असितागुरू (9) कृष्णागुरू (34)। कालागुरू से तिलक लगाने का उल्लेख किया गया है । इसका प्रयोग पालेपन में सुगन्ध लाने के लिए होता है । घूम के रूप में इसका व्यवहार दुर्गन्ध और जन्तु. नाशक गुण के लिए किया जाता है । मृगमर
कस्तुरी के अंगराग का उल्लेख किया गया है। गोशीर्षचन्दन
इसके अंगराग मलने का उल्लेख किया गया है ।
.. चन्दन के अंगराग का अनेकों बार उल्लेख आया है 12, 34, 36 56, 66,79, 115, 180। कपूर से सुरभित चन्दन रस के अंगराग का उल्लेख है 105। कपूर तथा कस्तूरी मिश्रित चन्दन का, भोजन के पश्चात् उबटन किया जाता था 69। हरिचन्दन 152, 257
कपूर व अगुरू को तुलसीकाष्ठ के साथ घिसकर हरिचन्दन बनाया जाता था । ईसके अंगराग का उल्लेख है ।
इसका समस्त शरीर पर उद्वर्तन किया जाता था 178। कुंकुम के
1. उत्कलिनकालागरुतिलकशोभम्.... .....
- 2. प्रत्यग्रमृगमदांगरागमलिनवपुषो........
कदाचिद्धौतमृगमदांगरागमनुरागजं........ 3. वही, पृ. 37, 217
-तिलकमंजरी पृ. 161 -तिलकम
-वही, पृ. 17 -वही, पृ. 18