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तिलकमंजरी में वर्णित सामाजिक व धार्मिक स्थिति
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पुरोहित के पश्चात् श्रोत्रिय ब्राह्मणों में श्रेष्ठ माने जाते थे। श्रोत्रियों को जप में अनुरक्त कहा गया है। श्रोत्रिय प्रातःकाल में राजा से भेंट करने जाते थे।
- समस्त वेदों के ज्ञाता को द्विज कहा गया है । सामस्वरों से आनन्दित होने वाले द्विजों का वर्णन किया गया है। द्विज समूहों से युक्त अयोध्या नगरी ब्रह्मलोक सी जान पड़ती थी।। देवों तथा द्विजों की प्रसन्नता से शुभ कार्य सिद्ध होते हैं, यह मान्यता थी। . .
विप्रों को नामकरण संस्कार पर गो तथा स्वर्ण-दान देने का उल्लेख आया है।' नामकरण संस्कार जन्म के दसवें अथवा बारहवें दिन सम्पन्न किया जाता था। राजकुल के वर्णन में ब्राह्मणों द्वारा सम्पन्न विभिन्न कार्यों का उल्लेख किया गया है। पुरोहित हरे कुश हाथ में लेकर स्वर्णमय पान से शांतिजल छिड़क रहा था। यज्ञमण्डप के पास अजिर में बैठे द्विज मन्त्रोच्चार कर रहे थे।10 श्रोतियों के दानार्थ लायी गायी गायों से बाह्य कक्षा भर गयी थी। नैमित्तिक ज्योतिषी के लिए प्रयुक्त हुआ है । पुरूदंशा नामक राजनैमित्तिक का उल्लेख आया है ।12 यह राजकार्यों के लिए मुहुर्त शोधन का कार्य करता था।18 मौहूर्तिक,
1. जपानुगगिमिरूपवनरिव श्रोत्रियजनैः.... -वही, पृ. 11 2. वही, पृ. 62 3. सकलवेदविद्वजोऽपि....
-वही, पृ. 406 4. सवनराजिमिः सामस्वररिव क्रीडापर्वतकपरिसरैरानन्दितद्विजा,
-वही, पृ. 11 5. सब्रह्मलोकेव द्विजसमाजः,
- वही, पृ. 11 6. देवद्विजप्रसादादिहापि सर्व शुभं भविष्यतीति.... -वही, पृ. 64 7. दत्वा समारोपिताभरणाः सवत्साः सहस्रशो गाः सुवर्ण च प्रचुरमारम्भानि स्पृहेभ्योविप्रेभ्यः
--वही, पृ. 78 8. पाण्डेय, राजबली-हिन्दू संस्कार पृ. 107 चौखम्बा विद्याभवन,
वाराणसी, 1966 . 9 तिलकमंजरी, पृ. 63 10. वही, पृ. 64 11. वही, पृ. 64 12. वही, पृ. 403 13. वही, पृ. 64, 95, 131, 190, 193, 232, 263, 403