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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
कर काव्यरूपी स्वर्ण के गुणों को कहता है ।1 स्वर्णकार के कषा उपकरण का उल्लेख किया गया है।
(2) वलयकार-वलयकार हाथी दांत के कंगन बनाने वाले को कहते थे ।
(3) कुलाल-कुम्हार के लिए कुलाल शब्द का व्यवहार हुआ है । कुलाल के चक्र का उल्लेख किया गया है। प्रजापति की कुलाल से तुलना की गयी है । .... .
(4) सूत्रधार-सूत्रधार राजमिस्त्री को कहते थे। जीर्ण मन्दिरों को पुननिर्मित करने के लिए मेघवाहन ने सूत्रधारों को नियुक्त किया था ।
(5) कार्म--तृणमय गृह अर्थात् घास फूस के बंगले बनाने में कुशल व्यक्ति को कार्म कहते थे। राजा जब सैनिक प्रयाण के लिए निकलते तो राजकुल से निकलने के बाद जगह-जगह पर सैनिक पड़ाव के लिए घास फूस के राजमन्दिर बनाये जाते थे। इस कार्य में कुशल व्यक्तियों को काम कहा जाता था।
(6) मालिक-मालाकार को मालिक कहा जाता था। कांची नगरी में मालाकारों की बहुलता वणित की गई है।
(7) भिषग्-आहारमण्डल में राजा के प्रासन के समीप भोजन के परीक्षण हेतु भिषग् अर्थात् वैद्य बैठता था । भिषग् मरणासन्न व्यक्ति के धन का अपहरण कर लेता था ।10
(8) लूप-नाट्य में काम करने वाले नट को शैलूष कहा जाता था ।11 मदिरावती को रागरूपी नट की रंगशाला कहा गया है ।12
1. कपाश्मनेव श्यामेन मुखेनाधोमुखेक्षणः। .
काव्यहेम्नो गुणान्वक्ति कलाद इव दुर्जनः ॥ -वही, पृ. 2, पर 14 2. क्वचिद्वलयकारा इव कल्पितकरिविषाणाः, -वही, पृ. 89 3. वही, पृ. 145, 216 4. कुलालचक्रक्रमेण........
--तिलकमंजरी, पृ. 245 5. प्रलयार्कमण्डलोत्पत्तिमृत्पिण्डमिव प्रजापतिकुलालस्य, -वही, पृ. 216 6. शीर्णदेवतायतनेषु कर्मारम्भाय... सूत्रधारान्व्यापरयतः, -वही, पृ. 66 7. स्वकर्मावहितकार्मनिर्मिततार्णमन्दिर........ -वही, पृ. 196 8. बहुमालिकाः प्रासादाः प्रकृयश्च, .
-वही, पृ. 260 9. नपासनासन्ननिषण्णभिषजि.........
-वही, पृ. 69 10. विपत्प्रतीकारासमर्थः क्षीणायुषोऽस्य भिषगिव कथमृकथमाहरामि । 11. वही, पृ. 22, 372 12. रङ्गशाला रागशैलूषस्य........
-वही, पृ. 22
वही, पृ. 44