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________________ 208 तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन कर काव्यरूपी स्वर्ण के गुणों को कहता है ।1 स्वर्णकार के कषा उपकरण का उल्लेख किया गया है। (2) वलयकार-वलयकार हाथी दांत के कंगन बनाने वाले को कहते थे । (3) कुलाल-कुम्हार के लिए कुलाल शब्द का व्यवहार हुआ है । कुलाल के चक्र का उल्लेख किया गया है। प्रजापति की कुलाल से तुलना की गयी है । .... . (4) सूत्रधार-सूत्रधार राजमिस्त्री को कहते थे। जीर्ण मन्दिरों को पुननिर्मित करने के लिए मेघवाहन ने सूत्रधारों को नियुक्त किया था । (5) कार्म--तृणमय गृह अर्थात् घास फूस के बंगले बनाने में कुशल व्यक्ति को कार्म कहते थे। राजा जब सैनिक प्रयाण के लिए निकलते तो राजकुल से निकलने के बाद जगह-जगह पर सैनिक पड़ाव के लिए घास फूस के राजमन्दिर बनाये जाते थे। इस कार्य में कुशल व्यक्तियों को काम कहा जाता था। (6) मालिक-मालाकार को मालिक कहा जाता था। कांची नगरी में मालाकारों की बहुलता वणित की गई है। (7) भिषग्-आहारमण्डल में राजा के प्रासन के समीप भोजन के परीक्षण हेतु भिषग् अर्थात् वैद्य बैठता था । भिषग् मरणासन्न व्यक्ति के धन का अपहरण कर लेता था ।10 (8) लूप-नाट्य में काम करने वाले नट को शैलूष कहा जाता था ।11 मदिरावती को रागरूपी नट की रंगशाला कहा गया है ।12 1. कपाश्मनेव श्यामेन मुखेनाधोमुखेक्षणः। . काव्यहेम्नो गुणान्वक्ति कलाद इव दुर्जनः ॥ -वही, पृ. 2, पर 14 2. क्वचिद्वलयकारा इव कल्पितकरिविषाणाः, -वही, पृ. 89 3. वही, पृ. 145, 216 4. कुलालचक्रक्रमेण........ --तिलकमंजरी, पृ. 245 5. प्रलयार्कमण्डलोत्पत्तिमृत्पिण्डमिव प्रजापतिकुलालस्य, -वही, पृ. 216 6. शीर्णदेवतायतनेषु कर्मारम्भाय... सूत्रधारान्व्यापरयतः, -वही, पृ. 66 7. स्वकर्मावहितकार्मनिर्मिततार्णमन्दिर........ -वही, पृ. 196 8. बहुमालिकाः प्रासादाः प्रकृयश्च, . -वही, पृ. 260 9. नपासनासन्ननिषण्णभिषजि......... -वही, पृ. 69 10. विपत्प्रतीकारासमर्थः क्षीणायुषोऽस्य भिषगिव कथमृकथमाहरामि । 11. वही, पृ. 22, 372 12. रङ्गशाला रागशैलूषस्य........ -वही, पृ. 22 वही, पृ. 44
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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