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________________ तिलकमंजरी में वर्णित सामाजिक व धार्मिक स्थिति व्यवहार से जनता का क्षुब्ध रहना बताया गया है ।1 सीधे-साधे ग्रामीण जन स्वर्ण के निष्क प्राभूषण को धारण करने वाले वणिक को भी राजकीय व्यक्ति समझ बैठे 12 रंगशाला नगरी की सीमान्त भूमि के निकट नदी के किनारे वणिक भात्, दही, घी, मोदकादि विक्रेतव्य वस्तुएँ फैलाये बैठे थे । 3 वैश्रवण नामक सुवर्णद्वीप के सांयात्रिक वणिक का उल्लेख आया है । समुद्र के मार्ग से द्वीपान्तरों तक व्यापार करने वाले बड़े-बड़े व्यापारियों को सांयात्रिक वणिग् कहा जाता था । वंश्यों को स्वभावतः भीरू कहा गया है । 5 वैश्य सदा देव, द्विजाति, श्रमण तथा गुरु की सेवा में तत्पर रहता था । शूद्र शूद्र का तिलकमंजरी में नाम से भिन्न निर्देश नहीं किया गया है, किन्तु एक प्रसंग में श्लेष के माध्यम से एक वर्ण कहकर शूद्र वर्ण का संकेत किया गया है । अंधकार के समूह से ग्रासीकृत समस्त विश्व एक वर्ण अर्थात् कृष्ण वर्ण का हो गया जैसे कलियुग से ग्रासीकृत समस्त जगत एक वर्णी अर्थात् शूद्र वर्ण से युक्त हो गया हो । अन्य जातियां तथा व्यवसाय इन चार वर्णों के अतिरिक्त अन्य सामाजिक व्यक्तियों के उल्लेख आये हैं, जिनसे विभिन्न व्यवसायों एवं जातियों का पता चलता है । । (1) कलाब - कलाद स्वर्णकार को कहते थे दुर्जन व्यक्ति से की गई है, जो कसौटी के पाषाण के 1. नैगमव्यवहाराक्षिप्तलोका वही, पृ. 98 2. कनकनिष्का वृतकन्धरं वणिजमपि राजप्रसादचिन्तक इति चिन्तयद्भिः, —वही, पृ. 118 3. वही, पृ. 117 4. वही, पृ. 127 5. ईषदपि न स्पृष्ट एष कैवर्तकुलसंपर्कदोषाशङ्किनेव वणिग्जातिसहभुवा भीरूत्वेन . 6. 7 207 कलाद की तुलना उस समान कृष्णमुख को नीचे .... - वही, , पृ. 130 - वहीं, पृ. 127 सर्वदा देवद्विजातिश्रमणगुरूशुश्रूषापरस्य ... कलयता कलिकालेनेव कलुषात्मना तमस्तोमेन कवलितं सकलमपि भुवनमेकवर्णमभवत् । -- तिलकमंजरी, पृ. 351
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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