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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
मेलला
जलमण्डप की वाररमणियों ने बकुल पुष्पों की माला की मेखलाएं धारण की थी। रसना
तिलकमंजरी ने नीलकमलों की माला पिरोकर रसना के स्थान पर बांध ली थी। नूपुर
कैरव की कलियों को मण्डलित करके नूपुर के स्थान पर पहने जाने का उल्लेख किया गया है। मृगाल के आभूषण
मृणाल के हार, केयूर तथा कटक बनाकर पहने जाते थे। ये मृणाल के आभूषण ग्रीष्म ऋतु में शीतलता के लिए धारण किये जाते थे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि तिलकमंजरी कालीन भारत में स्त्रियां तथा पुरुष न केवल आभूषण और सजीले वस्त्रों से ही अपना शृंगार करते थे, अपितु अपने शरीर को स्नान से स्वच्छ करके विभिन्न प्रकार के अंगरागों से सुगन्धित कर, नाना प्रकार की केश रचनाओं से अपने केशों को संवारते तथा विभिन्न ऋतुओं में खिलने वाले पुष्पों से अपने शरीर के विभिन्न अवयवों का प्रसाधन करते थे । स्त्रियां इन कोमल कलाओं में विशेष निपुण हुआ करती थीं।
पशु-पक्षी वर्ग तिलकमंजरी में विभिन्न प्रकार के 80 पशु, पक्षी तथा जलचरों का वर्णन आया है। कहीं उपमान के रूप में, कहीं प्रकृति-वर्णन के प्रसंग में इनका उल्लेख आया है । तिलकमंजरी में 35 पक्षी, 22 पशु तथा 24 जलचर व सरीसृप उपवर्णित किये गये हैं। समुद्र यात्रा का विस्तृत वर्णन होने से इसमें अनेक ऐसे जलचरों का वर्णन किया गया है, जो संस्कृत साहित्य के अन्य ग्रन्थों में दुर्लभ हैं ।
1. वही, पृ. 107 2. जघनमंडलनद्धनीरन्ध्रकुवलयदाम रसनागुणा" -तिलकमंजरी, पृ. 368 3. नूपुरस्थानसंदानितसनिद्रकैरवमुकुलमण्डलीका...."-वही, पृ. 368 4. कण्ठमुजकराग्रादिभि "हारकेयूर कटकप्रभृत्याभारणजालं माणार्लमुद्वहन्ती,
.. -वही पृ. 368 5. वही, पृ. 180