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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
में इस विन्यास के लिए अलकपद्धति, अलकवल्लरी, अलकलतादि शब्दों का प्रयोग हुआ है । तिलकमंजरी के कपोलस्थल की पत्रांगुलि रचना ऐसी जान पड़ती थी मानों अलकपाल का स्वच्छ गण्डस्थलों पर प्रतिबिम्ब पड़ रहा हो । कुत्रित अलकों का उल्लेख किया गया है । गन्धर्वदत्ता के ललाट पर स्थित सूक्ष्म अलकवल्लरी की पंक्ति शत्रुबन्दियों के व्यजन-वायु से नृत्य करती थी। केशपाश
तिलकमंजरी में केशपाश का छ: बार उल्लेख हुआ है। केशपाश बालों के उस विन्यास को कहते थे, जिसमें बालों को इकट्ठा कर पुष्प पत्रादि से सजाकर बांध दिया जाता था । लक्ष्मी बायें हाथ से अपने केशपाश को बार-बार पीछे की ओर बांधने की कोशिश कर रही थी। चित्र में तिलकमंजरी के बाल केशपाश विधि से संवारे गये थे। ऋषभ की प्रतिमा के केशपाश को कृष्णागरु के द्रव से लिखित पत्रभंग अलंकरण के समान कहा गया है।10 मालती पुष्पों की माला से ग्रथित केशपाश का उल्लेख किया गया है, जो ऐसा जान पड़ता था मानो यमुना के जल में गंगा की लहरें मिल गयी हों। कुन्तलकलाप
इस विधि के लिए कुन्तलकलाप12 तथा केशकलाप13 शब्द बाये हैं ।
1. तिलकमंजरी, पृ. 29, 312 2. वही, पृ. 32, 262 . 3. वही, पृ. 247 4. स्निग्धनीलालकलता इव छायागताः........-तिलकमंजरी, पृ. 247 5. संकुचितालकाः प्रधानापणाः प्रमदाललाटलेखाश्च, -वही, पृ. 260 6. वही, पृ. 262 7. वही, पृ. 54, 162, 214, 217, 293, 334 8. वामकरतलेन...... कज्जलकूटकालं कालकूटमिव केशपाशं पुनः पुनः पृष्ठे बद्ध मामृशन्तीम्,
-वही पृ. 54 9. वही, पृ. 162 10. वही, पृ. 217 11. न ताः सन्ति सांयतन्यो मालतीस्रजस्तमिस्रनीकाशे केशपाशे कीनाशानुजाजलस्रोतसीव त्रिस्रोतोवीचयः,
-वही, पृ. 293 12. तिलकमंजरी, पृ. 202 13. वही, प. 209