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तिलकमंजरी का साहित्यिक अध्ययन
पहनते थे । 1 द्वयाश्रयकाव्य में बच्चे द्वारा भी निष्काभूषण के पहनने का उल्लेख है ।
एकावली
तिलकमंजरी में एकावली का दो बार उल्लेख हुआ है । मोतियों की एक लड़ी माला को एकावली कहते थे । समरकेतु ने नौ-युद्ध में जाते समय नाभिपर्यंत लटकती हुई बड़े-बड़े मोतियों की एकावली पहनी थी। मेघवाहन द्वारा एकावली धारण करने का उल्लेख है । 4
कण्ठिका
कण्ठिका का एक बार उल्लेख आया है । दिव्यायतन में उत्कीर्ण प्रशस्ति की वर्णपंक्ति सरस्वती के कण्ठ की मणिकण्ठिका सी जान पड़ती थी 15
प्रालम्ब
हरिवाहन घृत नाभिपर्यन्त लटकने वाले मुक्ताप्रालम्ब का उल्लेख किया गया है 16 अटवी में शबरी स्त्रियां हाथियों के मस्तकमणियों से शबलित गुंजाफल के प्रालम्ब गूंथ रही थी । तिलकमंजरी नाभिपर्यन्त लटकते हुए मणिप्रालम्बों को चेटी के गले से निकालकर शालभंजिकानों के कण्ठ में बांध रही थी । हर्षचरित में पद्मराग तथा मरकत मणि से गूंथी गई प्रालम्बमाला का उल्लेख है ।
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मुक्ताकलाप
मुक्ताकलाप का दो बार उल्लेख किया गया है ।
1. स्थूलस्वच्छ मुक्ताफलग्रथितानाभिचक्रचुम्बिनीमेकवालीं दधानो
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हेमचन्द्र, द्वयाश्रयकाव्यम् 8 / 10
3. सरस्वतीकण्ठ मणिकण्ठिकानुकारिणी मिर्वर्ण
4. कनकनिष्का वृत्तकन्धरं वणिजमपि
5.
6. आनाभिलम्बं मौक्तिकप्रालम्बम्
7. तिलकमंजरी, पृ. 200
8.
-तिलकमंजरी,
बघ्नती घनस्तनद्वन्द्वशालिनीनां"
पु.
175
वही, पृ. 219
वही पृ. 114
वही, पृ. 53 -वही पृ. 229
'चेटीकण्ठतो हठादानामिलम्बान्मणि-वही पृ. 364
प्रालम्बान्,
9. अनाभिलम्बं कम्बुपरिमण्डलेन कण्ठनालेन मुक्ताकलापं कलयन्तीम्,
वही पृ. 54 तथा 79