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तिलकमंजरी का सांस्कृतिक अध्ययन
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ने अपने 'कामसूत्र' में 64 कलाओ की सूची में वस्त्र तथा वेशभूषा से सम्बन्धित तीन कलाओं की जानकारी दी है
(1) नेपथ्यप्रयोग-अपने को या दूसरे को वस्त्रालंकार आदि से सजाना (2) सूचीवान-कर्म-सीनापिरोनादि . (3) वस्त्रगोपन-छोटे कपड़ें को इस प्रकार पहनना कि वह बड़ा दिखे
और बड़ा छोटा दिखें। धनपाल ने तिलकमंजरी में अनेक प्रकार के वस्त्रों का उल्लेख किया है, जिससे तत्कालीन भारत के समृद्ध वस्त्रोउद्योग पर प्रकाश पड़ता है । तिलकमंजरी में न केलल भारतीय वस्त्र अपितु विदेशों से आयातित वस्त्रों का भी उल्लेख है । तिलकमंजरी से प्राप्त वस्त्र सम्बन्धी इस जानकारी को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है(1) सामान्य वस्त्र-जैसे अंशुक, दुकूल, चीन, नेत्र, क्षोम, पट्ट,
अम्बरादि । (2) पहनने के वस्त्र -जैसे कचुक, उत्तरीय, कूर्पासक, तनुच्छद, चण्डा
तक, कोपीन, उष्णीष, परिधानादि । (3) अन्य गृहोपयोगी वस्त्र-जैसे कन्था, प्रावरण, आस्तरण, प्रेसेंविकाः
विस्तारिका, उहधान, वितानादि । तिककमंजरी में वस्त्र सामान्य के लिए कपंट, वसन, निवसन, वासस्, परिधान, सिचय, अम्बर, तथा चेल शब्द प्रयुक्त हुए हैं। कपड़ा बुनने को 'वान' कहा जाता था । तिलकमंजरी में सात प्रकार के वस्त्रों का उल्लेख किया गया है-अंशुक, दुकूल, · चीन, नेत्र, क्षोम, पट्ट, अम्बर । अमरकोश में वल्क, फाल, कोशेय तथा रांकव नामक वस्त्रों के चार भेद कहे गये हैं। जैन साहित्य में वस्त्रों की भनेक तालिकाएं आयी हैं, जिनका विस्तृत विवेचन डा० मोतीचन्द्र ने दिया है। आगे इन सभी प्रकार के वस्त्रों का विस्तार से विवेचन किया जाता है।
1. प्रावरणपटवानार्थमिः....
-तिलकमंजरी, पृ. 106 2. अमरकोश, 2/6/11 3. . मोतीचन्द्र, भारतीय वेशभूषा,पृ. 145-154...