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तिलकमंजरी, का सांस्कृतिक अध्ययन
सुन्दरी के जन्मोत्सव पर काँची के निवासियों ने अपने घरों में चीनाशुंक की रंग बिरंगी पताकाएं फहरायी थीं। मलयसुन्दरी ने गुप्तरूप से अपने भवन से निकलते समय अपने शरीर को पैरों तक लटकते हुए चीनाशंक पट से आवृत कर लिया था। चीनाशंक के वितानों का भी उल्लेख आया है। - एक अन्य प्रसंग में अंशुक वस्त्र के परदे का उल्लेख किया गया है । बाण के अनुसार अशुक वस्त्र अत्यन्त झीना तथा स्वच्छ था । धनपाल द्वारा प्रयुक्त 'अमलाशुंक' शब्द भी इसी विशेषता की और संकेत करता है।
हर्षचरित में मुक्ताशुंक का वर्णन आया है- मुक्तमुक्ताशुंक- रत्नकुसुमकनकपपत्राभरणाम् (पृ०242)। डॉ. अग्रवाल के अनुसार असली मोती पोहकर बनाया गया वस्त्र राजघरानों में प्रयुक्त होता था। इसी प्रकार अत्यन्त झीने वस्त्र को भग्नाशुंक कहा गया है।
__आ दुकूल अशुंक के पश्चात् तिलकमंजरी में दुकूल वस्त्र का सर्वाधिक उल्लेख किया गया है। दुकूल वस्त्र को प्राय: जोड़े के रूप पहना जाता था। मेघवाहन ने व्रतावस्था में चांदी के समान घुले हुए श्वेत दुकूल का जोड़ा पहना था ।10 समरकेतु ने हरिवाहन के अन्वेषण के लिए जाते समय श्वेत दुकूल का जोड़ा पहना थादुकल का जोड़ा पहनने के अन्य प्रसंगो में भी उल्लेख है ।12 तारक ने शंख
1. वही, पृ० 263 2. आप्रपदीनपरिणाहेनाप्रतनुना चीनांशुकपटेन प्रच्छाद्य....
- तिलकमंजरी, पृ० 302 3. वही, पृ० 57, 106 4. विस्तारितरूचिरपरिवस्त्रांशुके....।
-वही, पृ. 171 5. सूक्ष्म विमलेन अंशुकेनाच्छादितशरीरा.... बाणभट्ट, हर्षचरित, पू०१ 6. तिलकमंजरी, पृ० 229 7. अग्रवाल, वासुदेवशरण, हर्षचरितः एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० 200 8. वही पृ० 100 9. तिलकमंजरी, पृ० 24, 34, 54, 198, 203, 219, 115, 243, 125,
255,397 10. परिघाय तत्कालधोते कलधोते इवातिघलयतया विभाध्यमाने दुकूलवाससी,
• वही, पृ० 34 11. निवसितप्रत्यग्रसितदुकूलयुगल....
-वही, पृ. 198 12. वही, पृ० 115, 125, 243