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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
गयी थी । 1 दिव्यावदान में पट्टांशुक एक प्रकार के रेशमी वस्त्र के लिए आया है । डॉ. मोतीचन्द्र के विचार में यह सफेद और सादा रेशमी वस्त्र था | 2 गन्धक ने शुक्र के समान हरित वर्ण का पट्टाशुंक धारण किया था, जिसे स्वर्ण पट्टी से कसा गया था । गन्धर्वक के विमान में पट्टाशुंक की पताकाए लगायी गयी थी । 4 पट्टाशुंक वस्त्र के प्रावरण तथा वितान का भी उल्लेख है। 5 अंशुक वस्त्र को कल्पवृक्ष से उत्पन्न कहा गया है ।" तपस्विनी मलयसुन्दरी ने हंस के समान शुभ्र वल्कलाशुंक धारण किया था 17 दिव्याशुं क नामक उत्तम अंशुक वस्त्र का भी उल्लेख है । 8 इसी प्रकार वर्णाशुंक का उल्लेख किया गया हैं । समरकेतु की नाव पर ध्वज के अग्रभाग पर नये वर्णाशंक की पताका बांधी गयी थी ।'
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भारत में निर्मित इन अंशुक वस्त्रों के अतिरिक्त चीन से भी एक अंशुक वस्त्र मंगाया जाता था जिसे चीनांशुक कहते थे । तिलकमंजरी में चीनांशुक का अनेक बार उल्लेख हुआ है 110 दिव्यायतन में स्वणर्मय दोलायण्त्र के उर्ध्वभाग में चीनाशुंक की पताकाऐं बांधी गयी थी । 11 दिव्यायतन में चंचल चीनाशुंक पताका प्रतिबिम्ब को सर्प समझकर मयूरी उस पर आक्रमण कर रही थी । 12 मलय
अच्छावलधीत पट्टाशुं कपटाच्छादितम् .....
- वही, पृ. 69
मोतीचन्द्र, भारतीय वेशभूषा, पृ. 95 ज्वलदनेकपद्मराग तपनीयपट्टिकयागाढावनद्व शुकहरितपट्टांशुक निक्सन
- तिलकमंजरी, पृ. 165
- वही, पृ. 292 वही, पृ. 356
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वही, पृ. 381
(क) अपनी तसर्वांगीणहपट्टाशुं कप्रावरणा.... (ख) वही, पृ. 337, 267
6. (क) कल्पपादपाशुंक प्रावार......
(ख) वही, पृ. 152
(ग) वही, पृ. 160
7. हंसधवलं दिव्यतरुवल्कलांशुक मन्तिकम्...
159
8. वही, पृ. 69, 213, 338
9. वही, पृ. 132
यन्त्राणि ....
. 2 वही, पृ.215
- वहीं, पृ. 257
10 वही, पृ० 106, 157,215,262,302
11 प्रत्यग्ररचितामिश्चीनाशुं कपताकाभिः पब्लवितशिखराणि चामीकरचक्रदोला
- तिलक मंजरी, पृ० 157