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तिलकमंजरी का साहित्यिक अध्ययन
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पर बांध दिया । महोदधि नामक रत्नाध्यक्ष ने दाहिने हाथ से उत्तरीय के छोर से मुह ढापकर तथा बायें हाथ को जमीन पर रखकर राजा को प्रणाम किया। उत्तरीय के पल्लू के उड़ने से आकाश में जाता हुआ गन्धर्वक ऐसा मालूम पड़ता था मानों गरुड़ का शिशु हो । तिलकमंजरी ने पसीने से चिपटे हुए वस्त्र वाले नितम्ब को अपने उत्तरीय के अंचल से ढ़का था। एक स्थान पर उत्तरीय की गात्रिकाबन्ध ग्रन्थि का उल्लेख है। हर्षचरित में सावित्री के शरीर के ऊपरी भाग में महीन अंशुक की स्तनों के बीच बंधी गात्रिका प्रन्थि का उल्लेख है। उत्तरीय के लिए उत्तरासंग शब्द भी प्रयुक्त हुआ है । ज्वलनप्रभ ने अग्नि के समान शुद्ध सिचय वस्त्र का उत्तरासंग धारण किया था। क्षौम वस्त्र के उत्तरासंग का उल्लेख है। उत्तरीय के लिए संव्यान शब्द भी प्रयुक्त हुआ है । जलमण्डप में बैठी हुयी चार स्त्रियों ने बिसतन्तु से निर्मित संव्यान धारण किये थे। उत्तरीय को भी प्रावार भी कहते थे। गन्धर्वक ने मलयसुन्दरी को अपने प्रावार से ढक दिया था । 10 एक प्रसंग में उत्तरीयांचल से पंखा झलने का उल्लेख है।
यह एक प्रकार की कोटनुमा पौशाक थी जो स्त्री तथा पुरुष दोनों पहनते थे। मलयसुन्दरी ने त्रिवल्ली को ढकने वाला, हारीत पक्षी के समान हरे रंग का
1. वही, पृ. 45. 2. वही, पृ. 63 3. पवनवेल्लितोत्तरीयपल्लवप्रान्तपक्षतिः, -वही, पृ. 173
उत्तरीयांचलेन स्वेदनिबिडासक्तसूक्ष्म मृकुमाराम्बरं नितम्बम्" वही, पृ. 250 5. विधाय चिरमुत्तरीयेरण बन्धुरं गात्रिकाबन्धम् ..... तिलकमंजरी. पृ. 306 6. स्तनमध्यबद्धगात्रिका प्रन्थि
-बाणभट्ट : हर्षचरित, पृ. 10, हर्षचरित : एक सांस्कृतिक
अध्ययन, फलक 1 चित्र ३ 7. कपिशितग्निशौचसियोत्तरा संगम्............ तिलकमंजरी, पृष्ठ 37 8. वही, पृ. 79. १ वही, पृ. 107 10. (क) द्वौ प्रावारोसरासंगो समौ बृहतिका तथा संव्यानमुत्तरीयं च
-अमरकोश, 2/6/117 (ख) तिलकमंजरी, पृ. 380 11. वही, पृ. 155