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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
नामक द्राक्षारसात्मक मद्यविशेष पिलाये जाने का वर्णन किया गया है । यक्षों द्वारा उपवनों के लतामण्डपों में पानकेलि किये जाने का उल्लेख आया है । 2 प्रमद-वन कृत्रिम नदी की तरंगों से सिंचित भीनी-भीनी बयार से शीतल सहकार वृक्षों की छाया में राजा मुरजों की ध्वनि का आनन्द लेते हुए अन्तःपुरिकाओं के साथ पुराने मद्य का पानोत्सव करते थे । 8 तिलकमंजरी ने उत्तरकुरू से लाये गये कल्पवृक्ष के फल के रस से तैयार किये गये मद्य से विद्याधर कुमारियों के साथ पानोत्सव मनाया | 2
द्यत-कीड़ा
द्यूतक्रीड़ा प्राचीन भारत का अत्यन्त लोकप्रिय खेल था, जिसमें राजा व प्रजा दोनों अनुरक्त थे । एक परिसंख्या अलंकार के प्रसंग में द्यूत-क्रीड़ा क बन्ध व्यध तथा मारण पारिभाषिक शब्दों का उल्लेख किया गया है । द्यूत-क्रीड़ा 15 में सारीयों का परस्पर बन्ध व्यघ तथा मारण होता था । सारी तथा अक्ष शब्दों का उल्लेख किया गया है । सारी का अर्थ खेलने की गोटी एवं अक्ष का अर्थ पासा खेलना था अर्थात् गलत पासा खेलने पर सारियों को या तो रोक दिया जाता जिसे बन्ध कहते थे, अथवा उनका प्रत्यावर्तन कर दिया जाता जिसे व्यघ कहते थे अथवा उन्हें मार दिया जाता ( मारण) अर्थात् पट्ट से बाहर निकाल दिया जाता था । द्यूत में पराजित होने पर दाव में रखी गयी वस्तु जिसे 'पणित' कहते थे, देनी पड़ती थी । जुए में हार जाने पर पणित दिये बिना कहां जाता है, यह कहकर चतुरवनिताओं द्वारा मेघवाहन को बलात् खींच लिया जाता था । युद्ध में सोने की ढाल का यम रूपी घूतकार के कौतुकपूर्ण चतुरंग के रूप में वर्णन किया गया है ।' स्त्रियों में भी द्यूत खेलने का प्रचलन था । सरोवर के तीर पर
1. तिलकमंजरी, पृ. 18
2. वही, पृ. 41
3. विधेहि कृत्रिमनदीत रंगमारुतावतारशीतलेषु प्रमदवन सहकारपादपतलेष्वनुत्ताल’''पुराणवारूणीपानोत्सवम् ।
- वही, पृ. 61
4. वही, पृ. 196
5. सारीणामक्षप्रसरदोषेण परस्परं बन्धव्यघमारणानि,
1:3
6. कदाचित्कीड़ाये तपराजितः पणितमंप्रयच्छन् 'गच्छसि' इति,
7.
वहीं, पृ. 15
- तिलकमंजरी पृ. 18
अन्तककितवकौतुकाष्टापदं प्रकोष्टविनिविष्टमष्टापदम् .........
— वही,
पृ. 84