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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
पर व्यर्थ ही तूलिका चला रहा था । 1 संस्कृत साहित्य में चित्र बनाकर प्रेमी - प्रेमिका द्वारा विरह वेदना को हल्का करने का वर्णन प्रायः किया गया है । यथा मृच्छकटिक में वसन्तसेना चारुदत्त का चित्र बनाती है । शाकुन्तल में दुष्यन्त शकुन्तला का चित्र बनाकर मन बहलाता है । रत्नावली नाटिका में नायिका सागरिका राजा उदयन का चित्र बनाती है | 2
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नृत्य तथा नाटक
संगीत एवं चित्रकला के अतिरिक्त नृत्य तथा नाटक भी राजदरबारों में मनोरंजन के प्रमुख साधन थे। मेघवाहन का नृत्यकला में दक्ष नृत्यविशारदों के नेतृत्व में लास्य नृत्य करती हुई नर्तकियों के नृत्य द्वारा मनोरंजन किया जाना वर्णित किया गया है राजा स्वयं भी इस कला में पूर्णत निष्णात होते थे एवं नर्तकियों के नृत्य की आलोचना करके मनीषियों का मनोरंजन करते थे 14 उत्सवों पर विशेषकर जन्मोत्सव एवं विवाह, वसन्तोत्सवः युद्ध में विजय प्राप्त करने पर. राजा उद्यानों में नृत्य का आयोजन करते थे । जिनायतन के यात्री - त्सवों पर भी नृत्यों का आयोजन किया जाता था । जिनेन्द्र के अभिषेक के अवसर पर विचित्रवीर्य की सभा में विभिन्न देशों से अपहृत राजकन्याओं ने नृत्य करके विधाधरों का मनोरंजन किया था। 7 मलयसुन्दरी ने अपने नृत्य कौशल से विद्याधरों को भी चमत्कृत कर दिया । तिलकमंजरी शोधशाला की रंगशाला में निपुण नर्तकियों पर नृत्यों के नवीन प्रयोग करती थी । गर्भकाल में मदिरावती ने सागरान्तरवर्ती द्वीपों के सिद्धायतनों में अप्सराओं के सायंकालीन प्रेक्षानृत्य देखने की अभिलाषा प्रकट की थी 10
1.
2.
3.
मत्समागमध्यानमीलिताक्षः पुरः स्थापिते वृथैव तूलिकया चित्रफल के रूपम लिखत् ।
— वही,
पृ. 279
द्विवेदी, हजारीप्रसाद; प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद, 65 पृ. कदाचिदावेदित निखिल नाट्य वेदोपनिषद्मिर्तर्तकोपाध्यायै..
वही, पृ. 18
तिलकमंजरी, 75, 163, 263, 302, 323, 391
4.
5.
6.
at, q. 158, 269
7.
वही, पृ. 269
8, वही, पृ. 270
9.
कदाचिदुपरितन सौधशाला र चितरंगा ........
• जहार । — तिलकमंजरी,
............
18
प्रयोगजातमारोपयन्ती
वही, पृ. 391
10. विबुघवृन्दपरिवृता शाश्वतेषु सागरान्तरद्वीप सिद्धायतनेषु सांध्य मारव्धमप्सरोभिः प्रेक्षानृत्य मीक्षितुमाकांक्षत् ।
- वही, पृ. 75