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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
वार्तालाप करने के लिए कहती है ।। पुरुष एवं स्त्रियां भी परस्पर इस प्रकार के वाद-विवाद करते थे। हरिवाहन ने तिलकमंजरी के अन्त:पुर की विलासिनीयों के साथ कलाओं में वाद-विवाद किया था । 'अ) संगीत
संगीत एवं वाद्य-वादन दोनों में ही राजाओं की समान रूचि थी। राजा स्वयं भी गाते थे तथा गायकजनों के गीत सुनकर भी अपना मनोरंजन करते थे । मेघवाहन स्वरचित शृंगाररस पूर्ण सुभाषितों को स्वरबद्ध कर गाथकगोष्ठी द्वारा उनका पुनर्गान कराकर आनन्द प्राप्त करता था ।3 गीत गोष्ठियों का आयोजन किया जाता था, जिसमें स्वरादि पर विचार विमर्श होता था । प्रायः मध्यान्ह में भोजन के पश्चात् राजा अपने प्रासाद के शिखर प्रान्त में निर्मित दन्तवलमिका में विश्राम करते हुए संगीत वाद्यादि के द्वारा मनोरंजन करते थे ।। संगीत एवं वाद्य राजकीय जीवन की दैनिक आवश्यकता बन गये थे, अत: तिलकमंजरी के विरह में व्याकुल हरिवाहन न चाहते हुए भी वेणुवीणादिवाद्यों का आदःपूर्वक श्रवणकरता था। यही स्थिति समरकेतु की भी वर्णित की गयी है।' तिलकमंजरी हरिवाहन के वियोग से संतप्त होकर कृत्रिमाद्रि के शिखर पर स्थित कामदेव के मन्दिर में देवपूजा के व्याज से रत्नवीणा बजाती थी।
1. चित्रकर्माणि वीणादिवाधे लास्यताण्डवगतेषु नाट्यप्रयोगेषु पड्जादिस्वर
विभागनिर्णयेषु पुस्तककर्मणि द्रविडादिषु पत्रच्छेदभेदेष्वन्येषु च विदग्धजन विनौदयोग्येषु वस्तुविज्ञानेषु पृच्छनाम् ।
-वही, पृ. 363 2. यत्र कलासु कुशलामिरन्तः पुरविलासिनीमिः सह कृतः क्रीडा विवादः।।
-वही, पृ. 390 कदाचित्स्वयमेव रागविशेषेषु संस्थाप्य समथितानि शगारप्रायरसानि स्वरचितसुभाषितानि स्वभावरक्तकण्ठया गाथकगोष्ठया -पुनरुक्तमुपगीयमानान्यनुरागभावितमनाः शुश्राव ।
___-वही, पृ. 18 4. गलितगर्वगन्धर्वशिथिलिगीतगोष्ठीस्वरविचारा.... -तिलकमंजरी, पृ. 41 5. तत्कालसेवागतर्गीतशास्त्र....सह वेणुवीणावाद्यस्य विनोदेन दिनशेषमनयत् ।
-वही, पृ. 70 6. वही, पृ. 180, 183 7. वही, पृ. 279
कदाचित्कृत्रिमाद्रिशिखरवर्तिनि स्मरायतने देवतार्चनव्यपदेशेन....रत्नवीणां. वादयन्ती।
-वही पृ. 391