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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
यहां अयोध्या तथा भारतवर्ष, कमल एवं कणिका में बिम्बप्रतिबिम्ब भाव से सम्बन्ध होने के कारण निदर्शना अलंकार है ।
अतिशयोक्ति
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भामह (अष्टम शती) ने गुणातिशय के योग से विशेष ढंग की कही हुई (लोकातिक्रान्तगोचर) बात को अतिशयोक्ति कहा है ।1 दण्डी ने भी काव्यादर्श में प्रस्तुत को असामान्य ढंग से वर्णन करने को अतिशयोक्ति कहा है । तिलकमंजरी में अतिशयोक्ति के इसी प्रकार के उदाहरण मिलते हैं दो दृष्टान्त प्रस्तुत है -
(1) गन्धर्वदत्ता का वर्णन अतिशयोक्ति पूर्ण है – “समान कान्ति के कारण जिसका स्वर्णपट्ट अस्पष्ट दिखाई देता था, (गन्धर्वदत्ता) उसके ललाट पर शत्रुओं के बन्दीजनों के पंखा झलने से सूक्ष्म अलंक लताएँ नृत्य करती थी । " 2 (2) इसी प्रकार आराम के वर्णन में अतिशयोक्ति अलंकार का उपयोग किया गया है— अवतीर्णश्च तस्मिंस्तापमतापमातपमनात पंतपनमतपनं दिवसमदिवस ग्रीष्मम प्रीष्मं कालमकालं तुषारपातमतुषारपातं त्रिभुवनमत्रिभुवनं सर्गक्रम ममंस्त
पृ. 212
दृष्टान्त
उपमान,
उपमेय, उनके विशेषण, साधारण धर्म आदि का बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव होने पर दृष्टान्त अलंकार होता है । 3
ज्वलनप्रभ की इस उक्ति में दृष्टान्त की झलक मिलती है - "क्षीरोद के अंक से दूर तथा स्वर्गं निवास को त्यागने के पश्चात् इस हार का आपके यहीं निवास स्थान है, क्योंकि क्षीण होने पर भी चन्द्रमा आकाश या शिव की जटा को छोड़कर पृथ्वी पर नहीं उतरता है । प्रस्तुत उदाहरण में हार तथा चन्द्रमा, सुरलोक वास का त्याग तथा शिव की जटा का त्याग, क्षीरसागर तथा अन्तरिक्ष में परस्पर बिम्बप्रतिबिम्ब भाव होने से दृष्टान्त अलंकार है ।
1. निमित्ततो वचो यत्तू लोकातिक्रान्तगोचरम्, मन्यन्तेऽतिशयोक्तिं ताम- भामह - भामहालंकार, 2/81
लंकारतया यथा ।
यस्यां ललाटे सदृशद्युतित्वादस्पष्टचामीकरपट्ट बन्धे । अनति सूक्ष्मालकवल्लरीणां मालाऽरिबन्दीव्यंजनानिलेन ॥
2.
3.
4.
- तिलकमंजरी, 262
पृ.
दृष्टान्तः पुनरेतेषां सर्वेषां प्रतिबिम्बनम् ।
- मम्मट, काव्यप्रकाश, 10/102 अस्य हि परित्यक्त सुरलोकवासस्य दूरीभूतदुग्धसागरोदर स्थितेस्त्वद्वसतिरेव स्थानम्, न हि त्रयम्बकंजटाकलापमन्तरिक्ष वा विहाय क्षोणोऽपि हरिणलक्ष्मा क्षिती पदं बध्नाति । - तिलकमंजरी, पृ. 43-44