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रसाभिव्यक्ति
गयी थी. अद्भुत रस के अन्तर्गत ही आता है । लक्ष्मी द्वारा भेंट की गयी बालाअंगुलीयक, जिसे पहनते ही शत्रु की सेना दीर्घनिद्रा में लीन हो गयी, अद्भुत रस का संचार करने वाली है । हाथी के द्वारा हरिवाहन को आकाश में उड़ाकर जाना अत्यधिक विस्मयजनक है । मलयसुन्दरी द्वारा पुष्पमाला पहनाये जाने पर तथा हरिचन्दन का तिलक लगाने पर समरकेतु के नेत्रों से उसका अदृश्य हो जाना, ये सभी आश्चर्ययजनक घटनाएं हैं। निशीथ नामक दिव्य वस्त्र का वर्णन किया गया है, जिसे पहनकर अदृश्य हुआ जा सकता था । इसके स्पर्श से ही समस्त शाप नष्ट हो जाते थे । शुक रूप गन्धर्वक का शाप इसी से नष्ट हो गया था वह अपने पूर्वरूप में आ गया । महर्षि द्वारा तिलकमंजरी तथा मलयसुन्दरी के पूर्वजन्मों की कथा के वर्णन में यह अद्भुत रस अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाता है, अतः धनपाल ने इसे 'स्फुटाद्भुतरसा' कथा उचित ही कहा है ।
भयानक
भयानक रस का स्थायिभाव भय है । इस रस की अभिव्यक्ति वज्रायुध तथा कुसुमशेखर की सेनाओं के युद्ध में हुयी है - महाप्रलयंसनिभ: समरसंघट्टः सर्वतश्च गात्रसंघट्ट रणितघण्टानामरिद्विपावलोकनक्रोधधाविताना मिभ्रपतीनां बू' हितेन प्रतिबलाश्च दर्शनक्षुमितानां च वाजिनां हेषितेन, हर्षो तालमूलताडिततुरंग बद्धरंहसां च स्यन्दनानां चीत्कृतेन, सकोपधानुष्कनिदिया च्छोटितधानां च चाययष्टrai टंकृतेन - समरभेरीणां भाङ्कारेण, निर्भराध्मातसकलदिवचक्रवालं यत्र साक्रन्दमिव साट्टहासमिव सास्फोटन रवमिव ब्रह्माण्डमभवत् - पृ. 87 इसके अतिरिक्त भयानक रस की अभिव्यक्ति मेघवाहन के वर्णन में बेताल वर्णन में मेघवाहन द्वारा अपने शिरच्छेद कर्तन के प्रसंग में, * समुद्र वर्णन
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यथा किल परैरलक्षिनतनुः कुमारो दिदृक्षते नगरमिति । तदि सत्यमेततदमुना स्पर्शानुमेयेन निशीथनाम्ना दिव्यपटरत्नेन प्रावृतांग पश्य त्वम् । .....व्यापृताक्षोऽपि लोकः स्तोकमपि नालोकयति देहिनम, अंधिमूलाक्रान्त सरोषमारोपितान पहरति मद्गात्रमुत्तमांगन सह -तिलकमजरी, पृ. 376
भोगनालोऽपि न दशति दन्दशूक..... दिव्यपुरुष दीर्घशापानपि स्पर्शमात्रेणायमिति निगद्य
तेनाच्छादयत् ।
यस्य फेनवत्स्फुट प्रसृतयशोट्टहासभरित भुवन कुक्षिरंगीकृतजेन्द्रकृत्तिभीषणः संजहार विश्वानि शात्रवाणि महाभैरवः कृपाणः ।
- तिलकमंजरी, पृ. 14
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वही, पृ. 47-49 4. वही, पृ. 52-53