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रसाभिव्यक्ति
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3 वीभत्स
तिलकमंजरी का वेताल-वर्णन वीभत्स रस का उत्तम उदाहरण है । जुगुप्पा वीभत्स रस का स्थायिभाव है।
अश्रुद्रसरलशिरादण्डनिचितेन निश्चेतुमुछायमूर्ध्व लोकस्य संगृहीतानेकमानरज्जुववोपलक्ष्यमाणेन....अघृणांचनादाननोद्वान्तगरेण जरदजगरेणगाढीकृतज्ञ तजक्वाथरक्ताशार्दूलचर्मसिचयम....आई पंकपटलश्याममति कृशतया काय दूरदशितोन्नतीनां पशुकानामन्तरालद्रोणीषु निद्रायमाणशिशुसरीसृपं सीरगतिमार्गनिर्गताविरलविषकन्दलं साक्षादिवाधर्मक्षेत्रमुर:प्रदेशं दर्शयन्तम्....गात्रपिशितमुतकृत्योत्कृत्य कीकशोपदंशमश्नन्तम्.....- पृ. 47
वेताल वर्णन के अतिरिक्त युद्ध वर्णन में भी बीभत्स रस की अभिव्यक्ति की गई है ।। 4 रौद्र
रौद्र रस का स्थायिभाव क्रोध है । वज्रायुध की. इस उक्ति में रौद्र रस की अभिव्यक्ति होती है-रे रे दुरात्मन् ! दुर्गहित धनुविद्यामदा-ध्यातविणाधम, बधान क्षणमात्रमग्रतोऽवष्थानम् । अस्थान एव कि दृप्यसि । पश्य ममापि संप्रति शश्वविद्याकौशलम् । इत्युवीर्य निर्यत्पुलकम सिलतामहणाय दक्षिणं प्रसारितवान्बाहुम् । अरिवघावेशविस्मृतात्मनश्च तस्योल्लासितको पसाटोपकम्पितांगुली ....अतिष्टिपम्-पृ. 91
वैरियमदण्ड नामक हस्ती के वर्णन में भी रौद्र रस का वर्णन किया गया है-अधःकृत प्रलयजलधरस्तनितेन विस्तारिणा कण्ठरसितेन वित्रासितसकलवनचरवृन्दम्, आसक्तवनदन्तिदानपरिमले पुरोतिनि महति पर्वतपादपाषाणे सरोषनिहितोभयविषाणम्....क्रोधमिव मूर्तिमन्तकमिवो पजातगजविवर्तम्-पृ. 185
लक्ष्मी के सेवक यक्ष महोदर ने अत्यन्त कुद्ध होकर गन्धर्वक को विमान सहित अदृष्ट सरोवर में फेंक दिया था। महोदर की निम्न उक्ति उसके क्रोधाधिक्य का संकेत देती है-स एवमुक्तमात्र एव मया रोषरक्तेक्षणो ललाटतटविघटित भंगुरभ्रकुटिरा विष्कृतवेतालरूपः रे रे दुरात्मन, अनात्मज्ञ, विज्ञानरहित, परिहुत विशिष्टजन समाचार....रे विधाधराधम, न जानासि मे स्वरूपम् ।तदरे दुराचार ऋ रहृदयोऽहम् । -इत्युदीर्य दत्तहुंकारः स्थास्थ एव तद्विमानं कधचिदुत्क्षिप्य दूरमदृष्टपारे सरसि न्यक्षिपत् ।।
1. युगपदेकीभूतोदारवारिराशिरस्रजलविसखषिर्धनपदाति घोरो मुदितयोगिनी ....कर्दमप्रायमपीयत क्षतजापगाम्बुकोणपगणेन । ।
-तिलकमंजरी, पृ. 87-88 2. तिलक मंजरी, पृ. 382-83