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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
मेघवाहन के इस वर्णन में काव्यलिंग अलंकार मिलता है-वह युद्धव्यसनी होने के कारण शत्रुओं की उन्नति से संतुष्ट होता था न कि प्रणाम से, दानप्रिय होने के कारण लोगों की याचकवृत्ति से अतृप्त होता था न कि सिद्धि से, तीव्रबुद्धि होने के कारण कार्यों की विषमता से प्रसन्न होता था न कि समता से-11 यहां युद्ध-प्रियता, दान प्रियता. तीव्रबुद्धि आदि हेतु रूप से वर्णित किये हैं, अतः काव्यलिंग अलंकार है। कारणमाला
जहां अगले 2 अर्थ के प्रति पहले 2 अर्थ हेतु रूप में वर्णित हों, वहां कारणमाला अलंकार होता है । इसी प्रकार पूर्व 2 के प्रति उत्तर 2 की हेतुता वणित होने पर भी कारण-माला अलंकार होता है। इसका उदाहरण विद्याधर मुनि के इस कथन में मिलता है-मुनि-जन सामान्य प्राणी के लिये अपेक्षित आहार को शरीर के लिए ग्रहण करते हैं, शरीर को भी धर्म का हेतु होने से धारण करते हैं. धर्म को भी मुक्ति का कारण मानते हैं तथा मोक्ष की भी विरक्ति से इच्छा करते हैं। यहां आहार, शरीर, धर्म तथा मोक्ष इन पूर्व 2 के प्रति शरीरधारण, धर्म-साधन मोक्ष तथा अनिच्छा ये उनरोत्तर अर्थ कारण रूप में वर्णित किये गये हैं, अतः कारणमाला अलंकार है।
तिलक मंजरी से प्रस्तुत 4 प्रकार के शब्दालंकारों तथा 23 प्रकार के अर्थालंकारों अर्थात् कुल 27 प्रकार के अलंकारों का यह अध्ययन, जिसमें उनके लक्षण तथा तिलकमंजरी से गृहीत उदाहरणों का विवेचन किया गया, धनपाल की अलंकार योजना का नैपुण्य प्रदर्शित करने में पर्याप्त है।
रसाभिव्यक्ति कवि की वाणी को ह्रदैकमय तथा नवरसरुचिरा कहा गया है। इसी प्रकार तुरन्त रसास्वादन से उत्पन्न परम आनन्द की प्रतीति काव्य के समस्त
1. यश्च संगरश्रद्धालुरहितानामुन्नत्यातुतोष न प्रणत्या, दानव्यवसनी जनाना
मर्थितयाऽप्रीयत न कु कृतार्थतया, कुशाग्रीयबुद्धिः कार्याणां वैषम्येन जहर्ष न समतयाः ।
-तिलकमंजरी, पृ. 14 2. यथोत्तरं चेत्पूर्वस्य पूर्वस्यार्थस्य हेतुता तदा कारणमाला स्यात् ।
-मम्पट, काव्यप्रकाश, 10/185 3. ये च सर्वप्राणिसाधारणमाहारमपि शरीरवृत्तये गृहन्ति, शरीरमपि धर्म
साधन मिति धारयन्ती, धर्ममपि मुक्तिकारणमिति बहुमन्यते, मुक्तिमपि निरूत्सुकेन चेतसाभिवांछति ....।
-तिलकमंजरी पृ. 26 4. नियतिकृत....नवरसरुचिरा निर्मिति.... -मम्मट, काव्यप्रकाश,1/1