Book Title: Tilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Pushpa Gupta
Publisher: Publication Scheme

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Page 130
________________ तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन (2) मलयसुन्दरी समरकेतु को देखकर कहती है- किमेष पाशग्रन्थि - पीडया निबिडमास्कन्दितान्ममेव हृदयाद्विनिः सृतो बहिः अथवा प्रार्थीताभिर्मदनुकम्पया देवनामिदिव्यशत्तया कुतोऽप्यानीतः, उतान्यदेव किंचित्प्रयोजनमालोच्य गुरुजनेन प्रहित: .... पृ० 3121 यहां भी शुद्ध सन्देह है । ........ निश्चयान्त सन्देह का एक उदाहरण दिया जाता है 120 (3) प्रभातकाल में हरिवाहन को जनाने के लिए बन्दी कहता रात्रि में दो या तीन सहयोगियों के साथ आपके विपक्ष द्वारा देवी के घर में, एक कोने में बैठकर दन्तवीणा बजाते हुए क्या संगीत का सेवन हो रहा है ? नहीं, नहीं, राजन् । शीत ऋतु का सेवन हो रहा है । 1 यहां पहले संदेह से प्रारम्भ किया गया है, पर बाद में निश्चय होने से निश्चयान्त सन्देह का उदाहरण है । समासोक्ति जहां श्लेषयुक्त विशेषणों द्वारा अप्रस्तुत का कथन किया जाय वहां समासोक्ति अलंकार होता है ।" समासेन संक्षेपेण उक्तिः समासोक्तिः - दो अर्थों का संक्षेप से कथन होने के कारण समासोक्ति कहलाता है । मम्मट ने श्लिष्ट विशेषण माना है किन्तु उद्भट समान विशेषण मानते हैं । उद्भट (अष्टम शती) के अनुसार प्रस्तुत के द्वारा समान विशेषणों के कारण अप्रस्तुत की प्रतीति समासोक्ति अलंकार है । 3 दो उदाहरण प्रस्तुत हैं- (1) अयोध्या के वर्णन में समासोक्ति का उदाहरण मिलता है-"अयोध्या नगरी मानों यज्ञ के धुएँ से अलकें संवारती थी, क्रीडाद्यानों से अंजन का तिलक लगाती थी (नगरी के पक्ष में अंजन, बिन्दु, तिलक नामक वृक्ष) दन्तवधियों से विलासमय हास को प्रकट करती थी, तथा सरोवरों से दर्पण ग्रहण करती थी । " 4 यहां प्रस्तुत अयोध्या नगरी में समान विशेषणों के द्वारा नायिका की प्रतीति कराई जा रही है, अतः समासोक्ति है । 1. 2. 3. 4. गेहे देव्याः सुषिरनिपतन्मारुतोत्तानवेणो, घृत्वा कोणं विरचितलयो वादयन्दन्तवीणाम् रात्रौ द्वित्रैः सह सहचरैः सेवते त्वद्विपक्ष:, • कि संगीत नहि नहि महीनाथ हेमन्तशीतम् ॥ - वही पृ० 358 परोक्तिर्भेदके: श्लिष्टः समासोक्तिः --मम्मट, काव्यप्रकाश, 10/147 प्रकृतार्थे वाक्येन तत्समानं विशेषणैः । अप्रस्तुतार्थकथनं समासोक्तिरुदाहृता ॥ -- उद्भट, काव्यालंकारसंग्रह, 2/10 विरचितालके व मखानलघूमकोटिभिः स्पष्टिलांजन तिलक बिन्दुरिव बालोद्यानैः, आविष्कृतविलासहासेव दन्तवलभीमिः, आगृहीतदर्पणेव सरोभिः -- तिलकमंजरी, पृ० 11

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