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तिलकमंजरी का साहित्यिक अध्ययन
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(2) अयोध्या के ही प्रसंग में श्लिष्ट विशेषणों द्वारा समासोक्ति का उदाहरण प्राप्त होता है—"पूर्वार्णव से आये हुए, सरल मृणालदण्डों को धारण करने वाले वृद्ध कंचुकों के समान राजहंसों द्वारा क्षण भर भी मुक्त न की जाने वाली सरयू नदी अयोध्या के समीप बहती थी।"1
___ इसमें सरयू में नायिका तथा पूर्वार्णव में नायक की श्लिष्ट विशेषणों द्वारा प्रतीति होती हैं, अतः समासोक्ति है । निदर्शना
ख्ययक (12वीं शत्ती) के अनुसार जहां दो वस्तुओं के सम्भव तथा असम्भव सम्बन्ध के द्वारा बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव की प्रतीति होती है, वहाँ निदर्शना अलंकार होता है। दो वस्तुओं का एकत्र सम्बन्ध अन्वय की बाधा न रहने पर सम्भव होता है तथा अन्वय की बाधा होने पर असम्भव कहलाता है।
मम्मट ने केवल असम्भव वस्तुओं के लिए उपमा की कल्पना को निदर्शना कहा है । दो उदाहरण प्रस्तुत हैं
(1) वेताल के वर्णन में निदर्शना का सुन्दर उदाहरण मिलता है-"भीतर जलती हुई पिंगलवर्णी भीषण कनीनिकाओं से युक्त वेताल के भीषण आकृति वाले नेत्रयुगल ग्रीष्मकालीन सूर्य के प्रतिबिम्ब से युक्त यमुना के आवर्तयुगल के समान प्रतीत हो रहे थे ।"4 यहां जलती हुई कनीनिकाओं से युक्त वेताल के नेत्रों तथा सूर्य के प्रतिबिम्बों से युक्त यमुना के आवर्त-युगल में बिम्बप्रतिबिम्ब भाव होने से निदर्शना अलंकार है।
(2) इसी प्रकार अयोध्या के वर्णन में निदर्शना का उदाहरण प्राप्त होता है-कमल की कणिका के समान अयोध्या नगरी भारतवर्ष के मध्यभाग को अलंकृत करती थी। 1. गृहीतसरलमृणालयष्टिमिः पूर्वार्णववितीणवृद्धकंचूकीमिरिव राजहंसः
क्षणमप्यमुक्तपार्श्वया... सरयूवाख्यया कृतपर्यन्तसरथा... -वही, पृ. 9 2. सम्भवाऽसम्भवता वा वस्तुसम्बन्धेन गम्यमानं प्रतिबिम्बकरणं निदर्शना।।
- रूय्यक, अलंकारसर्वस्व, पृ. 97 __निदर्शना । अभवन् वस्तुसम्बन्ध उपमापरिकल्पकः ।।
-मम्मट, काव्यप्रकाश, 10/148 4. अन्तर्ध्वलितपिंगलोग्रतारकेण करालपरिमण्डलाकृतिना नयनयुगलेन यमुनाप्रवाहमिव निदाधदिनकरप्रतिबिम्बगोदरेणावर्तद्वयेनातिभीषणम्...
-तिलकमंजरी, पृ. 48 5. वृत्तोज्जवलवर्णशालिनी कणिकेवाम्भोरुहस्य मध्यभागमलंकृता स्थिता भारतवर्षस्य.........
-तिलकमंजरी, पृ. 7