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तिलकमंजरी का साहित्यिक अध्ययन
105 (1) मदनमयमिव शंगारमयमिव प्रीतिमयभिवानन्दमयमिव विलासमयभि रम्यतामयभिवोत्सवमयभिव सकलजीवमाकलयन्न........ -प. 213 (2) सुखमया इव घृतिमया इव अमृतमया इव प्रीतिमया इव........
-प. 104 (3) विस्मयमयीव कौतुकमयीवाश्चर्यमयीव प्रमोदमयीव क्रीड़ामयीव उत्सवमयीव निवृत्तिमयीव तिमयीव हासमयीव........
-पृ. 62 (4) क्षितावमर्षमय इव क्रौर्यमय इव वैरमय इव व्याजमय इव हिंसामय इव विभाव्यमाने जगति ।
-पृ० 88 (ई) पदों के अन्तिम-अन्तिम वर्गों की समानता से वाक्य में चमत्कार पैदा किया गया है
....."आत्मा निवारणीयो घत्या न वृत्या......"दृष्टया न काययष्टया ...".""मनसा न वचसा....."सख्यश्चतुरवर्णरेखा नानंगलेखा:... देवतायतनवने न रतिभवने....... देवतास्तुतिगीतानि न निजचरणनुपूररणितानि......."मागधीश्लोकर्न सुरतदूतीलोकः,......."देवतार्चनकेतकदले न कपोलतले ....... पृ. 31-32 संस्कृत भाषा पर अधिकार
तिलकमंजरी के अध्ययन से ज्ञात होता है कि धनपाल को संस्कृत भाषा पर पूर्ण आचार्यत्व प्राप्त था। उनकी विद्वत्ता पर मुग्ध होकर ही मुंज ने उन्हें अपनी सभा में "सरस्वती" की उपाधि से विभूषित किया था।
धनपाल प्रसंग व भाव के अनुकूल उचित शब्दों के चयन में अत्यन्त निपुण हैं। उनके शब्द ही अर्थ को प्रतिध्वनित करने में समर्थ होते हैं । युद्ध के प्रसंग का यह दृष्टान्त प्रस्तुत है, जिससे युद्ध की ध्वनि स्पष्ट रूप से निकलती है-महाप्रलयसंनिमः समरसंघट्टः सर्वतश्च गात्रसंघट्टरणितघण्टानामरिद्धीपावलोकनक्रोधधावितानामिभपतीनां च वाजिनां हषितेन, हर्षोत्तालमूलतास्तितुरंगबदरंहसा च स्यन्दनानां चीत्कृतेन, सकोपधानुष्कनिर्वयाच्छोटितज्यानां च चापयष्टीना टकृतेन,खरखुरप्रदलितवण्डानां च पर्यस्यतां रथकेतनानां कडत्कारेण निष्ठरधनुर्यन्त्रनिष्ठयूतानां च निर्गच्छतां नाराचानां सूत्कारेण, वेगोकमानविवशवैतालकोलाहलघनेन च रुधिरापगानां धूतकारेण...... साक्रन्दमिव साहसमिव सास्फोटनरवमिव ब्रह्माण्डमभवत् । पृ. 87
धनपाल युद्ध के वर्णन में जितने निपुण हैं, उतने ही स्त्रियां के आभूषणों की मधुर झंकार करने में भी हैं-सत्वरोपसृतवेला....."जघनपुलिनसारसीनां रसनानां शिज्ज्तेिन...""कनककंकणानां क्वणितेन....."मुक्ताहाराणां रणितेन....
अक्षुण्णोऽपि विविक्तसूक्तिरचनेयः सर्वविद्याब्धिना । श्रीमुंजन सरस्वतीति सदसि क्षोणीभृता व्याहृतः ।।
-तिलकमंजरी, पद्य 53