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तिलकमंजरी का साहित्यिक अध्ययन
कुमुद मुकुलोदर संदानितान्यलिकदम्बकानि, प्रदोष इव विघटयन्रथांगमिथुनानि, राजहंस इवोल्लसल्लहरीपरम्पराप्रेर्यमाणमूर्तिरूततार । - पृ. 206-207
श्लेषोपमा
श्लेष पर आधारित उपमा का भी तिलकमंजरी में बहुलता से प्रयोग पाया गया है । श्लेषोपमा के उदाहरण, आराम (211-212), आयतन (204) अटवी (200) आदि के वर्णनों में मिलते हैं । चार उद्धृत किये जाते हैं(1) वैशम्पायनशापकथाप्रक्रमभिव दुर्वणशुक्रनाशमनोरमं जीवमिव, ...वसन्तचूतव्र मभिवचारूमंजरीकम्"
मालोपमा
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- पृ. 215 - पृ. 24
(2) नदीतटतरुमिव स्फुटोपलक्ष्यमाणजटम् ग्रीष्मकूपमिव (3) त्रयीमिव महामुनिस हस्रोपासितचरणाम् ..
-g. 222
(4) क्वचिद्वधूलोचनयुगमिव कृष्णतारोचित्तम् क्वचिद्विन्ध्याचलमिव धवलाक्रान्तम्, क्वचित्सुग्रीवमिव कपिशतान्वितम् - पृ. 222
तिलकमंजरी में मालोपमा का प्रयोग अनेक स्थलों पर प्राप्त होता है । जहां एक उपमेय के लिए अनेक उपमानों का ग्रहण होता है वहां मालोपमा होती हैं । चार उदाहरण प्रस्तुत हैं
(1) वारिबद्ध इव वनकरी, लब्धमिथ्याभिशाप इव साधुरकस्मात् प्रनष्टसकलगृहस्वापतेय इव गृहपतिरायतोष्णान् मुहुर्मुहुः सृजसि निःश्वासान् ।
- पृ. 111 (2) गगनाभोग इव शशि - भास्कराभ्यामच्युत इव शंखचक्राभ्यामम्भसां पतिरिवामृतवाडवाभ्यामभिरामभीषणो यशः प्रतापाभ्याम् ।
— पृ. 13
(3) चन्द्रमण्डलमिव शिशिरात्ययेन मानससरस्तोय मिवागस्त्योदयेन, सुकविवाचमिव सज्जनपरिग्रहेण गगनतलमिव शरत्कालागमेन, सप्रसादमपि किमपि मे प्रसादितं हृदयम् ।
-g. 56 (4) कोटरोदर निमग्नदावाग्निमुर्मुर इव महाद्र ुमः, मूललग्नकीट इव पंकजाकरः, बेहनष्टराहुवंष्ट्राशकल इव निशाकरः सान्तस्ताप इव लक्ष्यते भवान् ।
पृ. 27 रशनोपमा का कोई उदाहरण तिलकमंजरी में नहीं मिलता है । मूर्त के लिए अमूर्त उपमान के उदाहरण भी तिलकमंजरी में दुर्लभ हैं । एक उदाहरण प्रस्तुत है - 'प्राप्यन्ते घटना रथांगमिथुनंस्त्वद्वांछितांबें रिव' (238) तुम्हारे मनोरथों के समान चक्रवाकों का भी सम्मेलन हो रहा है ।
अतः तिलकमंजरी में सात प्रकार की उपमाओं के उदाहरण प्राप्त होते हैं । रशनोपमा का इसमें प्रयोग नहीं किया गया है । इस प्रकार ये कतिपय उदा