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धनपाल का पाण्डित्य
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समरकेतु को एक बार देख लेने के बाद ही उसका चित्र बना लिया था । कांची नगरी में आकर समरकेतु ने सुन्दरी राजकन्याओं के विद्ध रूपों का अवलोकन किया था।
चित्रकला में विदग्धता के लिए चित्रगति शब्द प्रयुक्त हुआ है । चित्रलेखन में प्रयुक्त नीले, पीले एवं पाटल वर्गों का उल्लेख किया गया है । अंगुलीयक के रस्नों से निकलने वाली नीली, पीली तथा पाटल वर्ण की द्युति से आकाश में मानो वह (गन्धर्वक) राजपुत्र को प्रसन्न करने के लिए दूसरा ही चित्र-निर्माण कर रहा था । चित्र में विभिन्न रंगों का यथोचित समायोजन किया जाता था ।। तिलकमंजरी स्वयं चित्रकला में अत्यन्त प्रवीण थी, अतः मलयसुन्दरी ने हरिवाहन को तिलकमंजरी से चित्रकला के विषय में प्रश्न करने का अनुरोध किया । सामुद्रिकशास्त्र
सामुद्रिकशास्त्र के ज्ञाता को सामुद्रविद् कहा गया है। तिलकमंजरी की प्रस्तावना में भोज के चरणों को सरोज, कलश, छत्र इत्यादि चिह्नों से युक्त कहा गया है। निम्नलिखित चिह्नों से युक्त व्यक्ति को राजा कहा गया हैछत्रं तामरसं धनू रथवरो दम्भोलिकूर्माऽङ्क शा वापीस्वस्तिकतोरणानि च सरः पंचाननः पादपः । चक्रं शङ्खगजोसमुद्रकलशोप्रासादमत्स्यायवा यूपस्तूपकमण्डलून्यवनिभृत् सच्चामरो दर्पणः ।। भोज को ही लम्बी और मांसल भुजाओं वाला कहा गया है ।10 सामुद्रशास्त्र में दीर्घ भुजाओं को प्रशस्त माना गया हैं।
1. यथादृष्टमाकारं तस्य नृपकुमारस्य संचार्य चित्रफलके........
-वही, प. 296 2. राजकन्यानां विद्धरूपाण्यादरप्रवर्तितः........ -वही, पृ. 322 3. तिलकमंजरी, पृ. 165 4. नीलपीतपाटलः..."चित्रकर्मनर्मनिर्माणभम्बरेकुर्वाणः -वही, पृ. 164 5. यथोचितमवस्थापितवर्णसमुदाया.......
-वही, पृ. 166 6. वही, पृ. 363 7. अवितथादेशसामुद्रविदाख्यातप्रसवलक्षणानां........ -बही, पृ 64 8. वही, पृ. 6
तिलकमंजरी, पराग टीका, भाग 1, पृ. 36 10. वही, पृ. 6 11. बाहूवामविवलितो वृत्तावाजानुलम्बितो पीनी । पाणी फणछत्राको करिकरतुल्यो समौ नृपतेः॥
-सामुद्रिकशास्त्र, पृ. 34