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धनपाल का पाण्डित्य .
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इस कथन से दशरूपक नामक रचना का भी संकेत मिलता है। इसके रचयिता धनंजय, धनपाल के समकालीन कवि थे। नाट्य के नाटक, प्रकरण, भाण, प्रहसन, डिम, व्यायोग, समवकार, वीथि, अंक, ईहामृग ये दस भेद हैं।
- रस की वृत्तियों एवं कैशिकी वृत्ति का उल्लेख आया है । रस की चार वृत्तियां कही गई हैं, कौशिकी, सात्वती, आरभटी तथा भारती। कैशिकी वृत्ति गीत, नृत्य, विलासादि शृगारमयी चेष्टाओं के कारण कोमल होती है।
उपर्युक्त अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि धनपाल बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। तिलकमंजरी उनके विस्तृत शास्त्रीय ज्ञान तथा व्युत्पत्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण है। वे न केवल रामायण, महाभारत, पुराण वेदवेदांगों तथा विभिन्न दार्शनिक सिद्धान्तों के ज्ञाता थे, अपितु वे धर्मशास्त्र, आयुर्वेद, गणित, संगीत, चित्रकला, सामुद्रिकशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र, नाट्यशास्त्रादि विभिन्न विषयों में भी पूर्ण हस्तक्षेप रखते थे।
1. नाटकं सप्रकरणं भाणः प्रहसनं डिमः । व्यायोगसमवकारी वीथ्यंकेहामृगा इति ॥
-धनंजय, दशरूपक, प्रथम प्रकाश कारिका 8 2. तिलकमंजरी, कैशिकीमिव रसवृत्तीनाम् पृ. 159
तद्वचापारात्मिका निश्चतुर्धा, तत्र कैशिकी। गीतनृत्यविलासाद्य म॒दुः शृंगारचेष्टितैः ॥
-धनंजय, दशरूपक, द्वितीय प्रकाश, कारिका 47
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