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धनपाल का पाण्डित्य
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कामशास्त्रोक्त क्रियाओं का वर्णन किया गया है ।1 नौ प्रकार की रतियों का उल्लेख आया है।
मत्त-कोकिल उद्यान में प्रवृत्त काव्य-गोष्ठी में मंजीर नामक बन्दीपुत्र ने ताडपत्र लिखित एक अनंग-लेख प्रस्तुत किया था। यह अनंग-लेख प्रस्तुत किया था। यह अनंग-लेख एक संक्षिप्त प्रेम-पत्र प्रतीत होता है, जिसमें विवाह के गुप्त स्थान का संकेत दिया गया है। प्रथम दर्शन से प्रेम का आविर्भाव तथा उससे उत्पन्न होने वाले विकारों का वर्णन मलयसुन्दरी एवं समरकेतु के प्रथम मिलन के प्रसंग में आता है ।
रतिकाल में व्यक्त स्त्रियों के शब्द विशेष "मणित" का दो बार उल्लेख आया है । वाजीकरण नामक कामशास्त्रोक्त पारिभाषिक शब्द का उल्लेख किया गया है। हरिवाहन समस्त चौसठ कलाओं में प्रवीण था । तिलकमंजरी ने समस्त कलाओं में निपुणता प्राप्त की थी।8 नाट्यशास्त्र
तिलकमंजरी में नाट्यशास्त्र तथा नाट्यशास्त्र सम्बन्धी विषयों के अनेकशः उल्लेख प्राप्त होते हैं, जो धनपाल के नाट्यशास्त्र से सम्बन्धित विस्तृत ज्ञान का परिचय प्रदान करते हैं । नाट्यशास्त्र के लिए नाट्यवेद शब्द का प्रयोग किया गया है। अयोध्या के नागरिकों को नाट्यशास्त्र का अभ्यस्त बताया गया है ।10 नट के लिए शैलूष शब्द का प्रयोग हुआ है ।11 नर्तक एवं नर्तकियों का अनेक बार उल्लेख किया गया है । नर्तकियों के लिए लासिकाजन शब्द भी प्रयुक्त
1. (क) निवेदयितुमिव दन्तच्छदछेदम्, · -वही, पृ. 278 तथा पृ. 17, 365 (ख) कथयितुमिव नखच्छेदवेदग्ध्यम्,
-वही, पृ. 278 (ग) प्रपंचयितुमिव ताडनक्रमम्, -वही, पृ. 278 तथा पृ. 15, 17 2. नवरतेषु बदरागामिरपि नीचरतेष्वसक्ताभिः,
वही, पृ. 10 3. वही, पृ. 108-9 4. निलकमंजरी, पृ. 277-81 5. (क) अतिशयितसुरतप्रगल्मकेरलीकण्ठमणितम्... -वही, पृ. 186
(ख) विदग्धकामिनीकेलिमन्दिरमिव मणिताराव... -वही, पृ. 215 वाजीकरणयोगोपयोगो व्याधिभेषजम्,
-वही, पृ 260 7. प्रथमसूनुविकलचतुःषष्टिकलाश्रयतया...
-वही, पृ. 362 8. लब्धपताका कलासु सकलास्वपि कौशलन बत्सा" -वही, पृ. 363 9. तिलकमंजरी, पृ. 18 तथा 270 10. अभ्यस्तनाट्यशास्त्ररप्यदर्शितभूनेत्रविकारः,
-वही, पृ. 10 11. रंगशाला रागशैलूषस्य,
-वही, पृ. 23