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तिलक मंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
हुआ है । 1 ताण्डव एवं लास्य नृत्य की इन दोनों विधियों का अनेकधा उल्लेख किया गया है । नाट्यशास्त्र सम्बन्धी रंगशाला 3 नाट्यशाला, रंगभूमि, 5 प्रेक्षाविधि, प्रेक्षानृत्य, 7 नान्दी, 8 आदि पारिभाषिक शब्दों के अनेक उल्लेख आये हैं । स्वर्ग में स्वयं भरतमुनि द्वारा प्रणीत दिव्य प्रेक्षाविधि का सजीव चित्रण किया गया है । उन्नत प्रासाद की नाट्यशाला में रंगभूमि रचित कर स्वयं भरतमुनि ने दिव्य प्रेक्षाविधि का आयोजन किया, जो स्वयं ध्वनित मेषरूपी मृदंगों से मनोहर थी । एक कोने में बैठे तुम्बरू वीणा पर गान्धार बजा रहे थे । वेणु पर किनरगण स्वर्ग की प्रसिद्ध मूर्च्छना गा रहे थे । रम्भा रघु दिलीपादि प्रसिद्ध राजाओं के चरित का अभिनय कर रही थी । इस प्रकार समस्त अष्टादश द्वीपों के राजा दिव्य नाट्यविधि का आनन्द प्राप्त कर रहे थे ।
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रस, अभिनय तथा भाव का उल्लेख प्राप्त होता है । 10 स्थायिभाव, व्यभिचारिभाव तथा सात्विक भावों का उल्लेख भी किया गया है । 11 मुग्धा एवं प्रौढ़ा इन दो नायिका भेदों का उल्लेख प्राप्त होता है । 12 प्रोषित भतृका एवं अभिसारिका नायिका भेदों का वर्णन भी आया है । 13 नाट्य अथवा नाटक के दस भेदों का उल्लेख एवं वीथि तथा डिम नामक भेदों का कथन किया गया है। 14
1.
कुरु सफलानि रंगशालासु लासिकाजनस्य निजावलोकनेन लास्यलीलायितानि
तिलकमंजरी, पृ 61
2. वही, पृ. 61, 18, 87, 239
3.
वही, पृ. 23, 61
4.
वही. पृ. 41
वही, पृ. 57
वही, पृ. 57
7.
वही, पृ. 75
8.
वही, पृ. 76
9.
भरतमुनिना स्वयमागत्य ... प्रेक्षाविधिम् । 10. (क) कदाचिद्रसाभिनय भावप्रपंचोपवर्णनेन,
(ख) अभिनयन्ति सम्यगमिनेयमर्थजातम्,
(ग) आवहन्ति च सहृदयहृदयवर्तिनो रसस्य परमं परिपोषम् ....
5.
6.
11. वही, पृ. 53
12. निसर्गमुग्धापि प्रौढवनितेव.....
13. वही, पृ. 296 तथा 121
14. असम्यज्ञातदशरूपकैरिव सर्वदाडिमीकृत वीथिमि :
- वही, पृ. 57 वही, पृ. 104 - वही, पृ. 268
- वही, पृ. 268
- तिलकमंजरी, पृ. 128
वही, पृ. 370