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तिलकमंजरी का साहित्यिक अध्ययन
सार आख्यायिका में पूर्ववर्ती कवियों को नमस्कार करने का कथा में । 1 इसके पश्चात् कवि ने अपने आश्रयदाता परमार पद्यों में प्रशस्ति लिखी है । तत्पश्चात् कथा रचना के उद्देश्य का उल्लेख किया गया है, जिसमें अपने आश्रयदाता के प्रति भक्ति प्रदर्शित की गयी है। यहां भी धनपाल ने रूद्रट के नियमों के विपरीत आख्यायिका के लक्षण का कथा में समावेश किया है । 2 तदनन्तर धनपाल अपने वंश का संक्षेप में दो पद्यों में वर्णन करते हुए स्वकर्तृत्व का उल्लेख करते हैं । इस प्रकार धनपाल ने 53 पद्यों में तिलकमंजरी की प्रस्तावना लिखी है । इसके बाद पूरी कथा गद्य में बिना किसी विभाग के लिखी गयी है, जिसका प्रारम्भ नगर वर्णन से किया गया है । बीच-बीच में प्रसंगानुकूल कुल 43 पद्यों का समावेश किया गया है । रूद्रट के अनुसार आख्यायिका में आर्या, अपखवज, पुष्पिताग्रा तथा मालिनी छंदों में पद्यों की रचना होनी चाहिए । तिलकमजरी में ये सभी छद पाये गये हैं, अतः धनपाल ने यहां भी कथा के नियमों का उल्लंघन किया है । 3 तिलकमंजरी की कथा स्वय धनपाल द्वारा निर्मित है, न कि इतिहास प्रसिद्ध । तिलकमंजरी का प्रधान रस श्रृंगार है, जो नायक हरिवाहन द्वारा अन्त में नायिका तिलकमंजरी की प्राप्ति में फलीभूत होता है । यह रूद्रट के कथा-लक्षणों के अनुकूल है । प्रमुख कथा में समरकेतु तथा मलयसुन्दरी के प्रेम रूपी कथान्तर का वर्णन किया गया है, जो प्रमुख कथा को आगे बढ़ाने में सहायक होता है तथा जिसे विभिन्न कथा - मोड़ों में प्रस्तुत करके अत्यन्त रोचक बनाया गया है । यह भी भामह के कथा-लक्षण के अनुकूल है । तिलकमंजरी की लगभग आधी प्रमुख कथा हरिवाहन के मुख से कही गयी है । 4 हरिवाहन की कथा में ही, जो समरकेतु तथा हरिवाहन के विद्याधर नगर में मिलने पर प्रारम्भ होती है, मलयसुन्दरी की कथा, गन्धर्वक का वृत्तान्त आदि अन्तर्निहित हैं । भामह के अनुसार कथा का वक्ता नायक से इतर व्यक्ति होना चाहिए, किन्तु तिलकमंजरी में कथा का वक्ता नायक हरिवाहन ही है ।
1. रूद्रट, काव्यालंकार 16-24
रूद्रट, काव्यालंकार 16-25
रूद्रट, काव्यालंकार 16-30
तिलक मंजरी, पृ. 241-420
इन सभी बातों पर विचार करने से यह प्रमाणित हो जाता है कि धनपाल के समय में आलंकारिकों द्वारा कथा व आख्यायिका के विषय में बन ये गये नियम शिथिल हो गये थे, तथा विधायें परस्पर काफी घुल-मिल गयी थी । विषय-वस्तु को आखनायिका के अन्य भेद गौण हो गये थे ।
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गद्य की ये दोनों छोड़कर कथा तथा
विधान है न कि राजाओं की 12