________________
धनपाल का पाण्डित्य
स्वर का अनेक स्थानों पर उल्लेख है (41, 227, 372 ) । पंचम एवं षड्ज स्वरों का उल्लेख किया गया है । जो श्रुति के बाद हों तथा अनुरणात्मक श्रोत्राभिराम और रंजक हो, उसे स्वर कहते हैं । 2 स्वर सात हैं – षड्ज, ऋषभ, गान्धार मध्यम, पंचम, धैवत तथा निषाद | 3
गीत का अनेकधा उल्लेख किया गया है । राग या जाति, पद, ताल तथा मार्ग - इन चार अंगों से युक्त गान गीत कहलाता है । 4 ग्राम शब्द अनेक बार प्रयुक्त हुआ है (186, 42, 57, 70 ) । ग्राम स्वरसंघात विशेष को कहते हैं । गान्धार - ग्राम का उल्लेख किया गया है । " मूर्च्छना' शब्द अनेक बार प्रयुक्त हुआ है (पृ.57, 120, 42 ) । गीति शब्द का उल्लेख हुआ है। 8 स्थायी, आरोही तथा अवरोही वर्णों से एवं लय से युक्त गान-क्रिया गीति कहलाती है । केका-गीति का
अलंकृत पद उल्लेख आया काकली - गीत, 13
है । इसके अतिरिक्त आरोह तथा अवरोह, 11 ताल तथा लय 12
1.
2.
3.
4.
5.
6.
7.
8.
9.
10.
(क) सूच्यमान पंचमस्वरप्रवृत्तिः "" (ख) क्रियमाणषड्जस्वरानुवाद इव...... (ग) षड्जादिस्वरविभागनिर्णयेषु "" संगीत दर्पण, प्रथम खण्ड, 1/57 षड्ज ऋषभगान्धारो मध्यमः पंचमस्तथा । धैवतश्च निषादश्च स्वराः सप्त प्रकीर्तिताः ॥
....
81
- तिलकमंजरी, पृ. 227
- वही, पृ. 227 -वही, पृ. 363
- संगीतादामोदर, तृतीय स्तबक, पृ. 30 कैलाशचन्द्र देव, भरत का संगीत सिद्धान्त, पृ. 250 यथा कुटुम्बिनः सर्वेऽप्येकीभूता भवन्ति हि । तथा स्वराणां सन्दोहो ग्राम इत्यभिधीयते ॥
-तिलकमंजरी, पराग टीका, भाग 1, पू. 120
तिलकमंजरी, पू. 42, 57 स्वर समूच्छितो यत्ररागतप्रतिपद्यते । मूर्च्छानाभिति तां प्राहु कवयो ग्रामसम्भवाम् ॥
— तिलकमंजरी, पराग, भाग 2, 120 कल्पतरुतलनिषण्ण किन रारब्धगान्धारग्रामगीतिरमणीयेषु,
11. कृतारोहावरोहयादृष्टया तां व्यभावयत् वही, पृ. 142
12.
1.3.
किनरकुलानां काकली गीत माकर्षयति,
कैलाशचन्द्र देव : भरत का संगीत सिद्धान्त, पृ. 245 विनोदयितुमिव .....मधुर के कागीतिभिः '
- तिलक मंजरी, पृ. 57
- तिलकमंजरी, पू. 180 - वही, पृ. 162
- वही, पृ. 169