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धनपाल का पाण्डित्य
पंचाग्नि तप का उल्लेख है । अन्य पारिभाषिक शब्दों का उल्लेख किया गया है ।
आयुर्वेद
तिलकमंजरी में आयुर्वेद का उल्लेख किया गया है । आयुर्वेद में पारंगत वैद्य हरिवाहन की देखभाल करते थे । इसके अतिरिक्त सन्निपात नामक व्याधि । मेघवाहन ऐश्वर्य रूपी सन्निपात से व्यामोरोगों में प्रमुख कहा गया है । सन्निपात
का उल्लेख अनेक बार किया गया हित नहीं था । सन्निपात ज्वर को ज्वर में मृत्यु की प्राप्ति का उल्लेख किया गया है । 7
महापातक' तथा दिव्य आदि धर्मशास्त्र सम्बन्धी
गलग्रह नामक रोग का संकेत मिलता है । चरक के अनुसार जिस मनुष्य का कफ स्थिर होकर गले के अन्दर ठहरा हुआ शोथ उत्पन्न करता है, उसे गलग्रह हो जाता है ।
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बहुगुल्म नामक उदर रोग उपवर्णित किया गया है | 10 गुल्म हृदय तथा नाभि के बीच में संचरणशील अथवा अचल तथा बढ़ने घटने वाली गोलाकार ग्रंथि को कहते हैं । II आयुर्वेद में गुल्म के पांच भेद बताये गये हैं- ( 1 ) वातज (2) पित्तज (3) कफज (4) त्रिदोषज तथा रक्तज 112 यहां वातज गुल्म की ओर संकेत है।
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राजयक्ष्मा जिसे आजकल टी. बी. कहते हैं, का उल्लेख आया है | T
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वही, पृ. 257
पंचतपः साधनविधान संलग्नैः
वही, पृ. 12,253
वही, पृ. 15 सर्वायुर्वेदपारगैभिषम्भि....... अजड़ीकृतः परमैश्वर्यसन्निपातेन, सन्निपातज्वरपुर: सरारोगा : .... दत्तदीर्घनिद्रा महासन्निपाताः, तिमीनां गलग्रह,
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10. यस्य श्लेष्मा प्रकुपितस्तिष्ठत्यन्तर्गले स्थिरः । आसु संजनयेच्छोथं जायतेऽस्य गलग्रहः ।। 11. वात रोगोपहत्तमिव बहुगुल्मसंकुलोदरम्, 12. भावप्रकाश, भाग 2, श्लोक 5 13. वही, श्लोक 1
14. सकल विपक्ष राजराज्यक्ष्मा''''''
वही, पृ. 236
-वही, पृ. 78 वही, पृ. 14 - वही, पृ. 376 वही, पृ. 89 तिलकमंजरी, पृ. 15
- चरकसंहिता, 18/22 - तिलकमंजरी, पृ 212
- तिलकमंजरी, पृ. 163