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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
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ने ब्रह्मसूत्र धारण किया था व्रतावस्था में राजा मेघवाहन कुश- शय्या पर शयन करते थे । 2 नैष्ठिक का उल्लेख किया गया है । 3
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धर्मशास्त्र में दान का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है । तिलकमंजरी में ब्राह्मणों को दान देने का अनेक स्थानों पर उल्लेख है । श्रोत्रियों को दान में दी गई सवत्सा गायों से राजकुल की बाह्यकक्षा भर गई थी। 2
अपराधी व्यक्ति को दण्डित करने के लिए धर्मशास्त्रप्रणीत निग्रहविधियोंका उल्लेख है, जिनमें हाथ पैर काटना, देश निकाला तथा गधे पर बैठाकर घुमाना ये प्रमुख हैं 5
चान्द्रायण व्रत का उल्लेख मिलता है । " पुत्र की कामना से अनेक प्रकार के व्रत धारण करने वाली अन्त:पुर की नारियों का वर्णन प्राप्त होता है । 7 शिशुजन्म पर षष्ठी देवी की पूजा का विधान किया गया है । हरिवाहन के जन्म पर षष्ठी की पूजा की गई थी। इसी प्रकार जातमातृपटल का लेखन तथा आय वृद्धा देव की पूजा का उल्लेख किया गया है । 10 पुत्र जन्म के छठे दिन रात्रि जागरण करने का वर्णन मिलता है । II गायत्रीमन्त्र के जप का उल्लेख है । 3
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"प्रकटोपलक्षमाणब्रह्मसूत्राम्,
- तिलकमंजरी, पृ. 24
-- वही, पृ. 61.
वही, पृ. 34
प्रकल्पितं कुशतल्पमगात् । प्रतिपन्ननैष्ठिकोचित क्रियः
वही, पृ. 64
यदीदृशेऽप्यपराधे नैनमन्यायकारिणं करचरणकल्पनेन वा स्वदेश निर्वासनेन वा रामसमारोपणेन वान्येन वा धर्मशास्त्रप्रणीत नीतिना निग्रहणेन विनयं ग्राहयति । - तिलकमंजरी, पृ. 112
चान्द्रायणादिविविधव्रतविधिः
- वही, पृ. 345
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7. पुत्रकाम्यन्तीभिरन्तः पुरकामिनीविधीयमानविविधव्रतविशेषम्,
- वही, पृ. 65
8. मातृकासु पूज्यतमा सा च षष्ठी प्रकीर्तिता
शिशूनां प्रतिविश्वेषु प्रतिपालनकारिणी । तपस्विनी विष्णुभक्ता कार्तिकेयस्य कामिनीम् । - वही, पराग टीका, भाग 2, पृ. 185 -वही, पृ. 77
9. आहरत भगवतीं षष्ठीदेवीम्,
10. आलिखत जातमातृपटलम् आरभध्वभार्यवृद्धासपर्याम्,
11. अतिक्रान्ते च षष्ठीजागरे,
- तिलकमंजरी, पृ. 77 वही, पृ. 78