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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
होते हैं । मेघवाहन के मन्त्रिगणों को धर्मशास्त्र का ज्ञाता कहा गया है । 1 स्वयं मेघवाहन धर्म के प्रति पक्षपात रखने के कारण यज्ञादि कर्मों में धर्माधिकारी का स्थान ग्रहण करता था । मेघवाहन की आज्ञा मात्र राज्य में अन्याय का विरोध करती थी, उसके धर्माधिकारी तो धर्म की शोभा थे । पुरुषार्थ का उल्लेख किया गया है । धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष पुरुषार्थंचतुष्टय माने गये । प्रथम पुरुषार्थ धर्म का उल्लेख किया गया है। 5
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देव ऋण, ऋणि ऋण तथा पितृ ऋण इन तीनों ऋणों का संकेत मिलता है | यज्ञ के द्वारा देव ऋण से, वेदाध्ययन के द्वारा ऋषि ऋण से तथा पुत्रोत्पत्ति द्वारा पितृ ऋण से मुक्ति प्राप्त होती है ।
धर्म, अर्थ तथा काम को त्रिवर्ग कहा जाता है । इस त्रिवर्ग का उल्लेख किया गया है | 7
जन्म के दसवें दिन नामकरण संस्कार का उल्लेख किया गया है, किन्तु एक अन्य प्रसंग में जन्म के ग्यारहवें दिन नामकरण संस्कार निष्पन्न करने का उल्लेख है । 'पारस्कर गृह्यसूत्र के अनुसार दसवें दिन नामकरण का विधान किया गया है - 'दशम्यामुत्थाय पिता नाम कुर्यात्' । मनुस्मृति में भी कहा गया है कि जन्म के दसवें अथवा बाहरवें दिन पुत्र का नामकरण करना चाहिए - 'नामधेयं दशम्या तु द्वादश्यां वास्य कारयेत् ।' जन्म के ग्यारहवें अथवा बारहवें दिन भी नामकरण का विधान है - 'एकादशे द्ववादशे वा पिता नाम कुर्यात् |' नामकरण
1. सचिवलोकोऽपि श्रुतत्वाद्धर्मशास्त्राणाम् .....
- तिलकमंजरी, पृ. 20
2. धर्मपक्षपातितया च द्वेवद्विजातितपस्विजनकार्येषु महत्सु कार्यासनं भेजे ।
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आज्ञवान्यायं न्यषेधयद्धर्मो धर्मस्थेयाः, सकलपुरुषार्थसिद्धिभिरिव ........
मन्थरितप्रथमपुरुषार्थसामर्थ्ये "
- वही, पृ. 19
- वही, पृ. 15 —वही,
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पू.
- वही, पृ. 297
'राजन् ! अध्वरस्वाध्यायविधानादानृण्यं गतोऽसि नः । पितॄणामपि गच्छ' इति याचितप्रसूतेरिव प्रादुर्भूतधर्मवासनया संविहितैर्देवर्षिभिः,
- वही, पृ. 20
अनयास्माकमविला त्रिवर्गसम्पत्तिः,
- तिलकमंजरी, पृ. 28
समागते च दशमेऽह्नि कारयित्वा " "हरिवाहन इतिशिशोर्नमि चक्र |
वही, पृ. 78
अतिक्रान्ते च दशमेऽन्हि ....... मलय सुन्दरीति मे नाम कृतवान् ।
-वही, पू. 263