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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
गमक, श्रुति, तान आदि संगीत के पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग हुआ है। सात स्वरों से उनपचास प्रकार की तानों की उत्पत्ति होती है। जहां मूर्च्छना के प्रयोग के लिए विस्तार किया जाय उसे तान कहते हैं । चित्रकला
- तिलकमंजरी में चित्रकला से सम्बन्धित अनेक उल्लेख आए हैं तथा इनसे यह प्रमाणित होता है कि उस युग में यह कला अपने सर्वोत्कर्ष पर थी। चित्रकला को आलेख्यशास्त्र तथा चित्रविद्या कहा गया है तथा चित्रविद्या के शिक्षक को चित्रविद्योपाध्याय कहा है । हरिवाहन ने चित्रकला में विशेष निपु. णता प्राप्त की थी। हरिवाहन तिलकमंजरी के चित्र-दर्शन से ही उस पर आसक्त हो गया था। हरिवाहन ने गन्धर्वक लिखित तिलकमंजरी के चित्र की, चित्रकला की दृष्टि से सम्यक समीक्षा की थी। चित्र लेखन में चित्त की एकाग्रता अत्यन्त आवश्यक है।
चित्रलेखा चित्रकला में अत्यन्त प्रवीण थी, अतः तिलकमंजरी की माता पत्रलेखा ने उसे सुन्दर आकृति वाले राजकुमारों के विद्ध चित्र बनाने का आदेश दिया था ।10 विद्ध एवं अविद यह चित्रकला के दो प्रकार थे। विद्ध चित्र वे होते थे, जिनमें वस्तु का यथार्थ चित्रण होता था। हरिवाहन के चित्रपट पर लिखित विद्ध रूपों का राजकन्यायें अपहरण करा लेती थीं।11 मलयसुन्दरी ने
1. स्पष्टमूर्छनागमकरचितम् ........
-वही, पृ. 186 2. पंचमश्रुतिमिव गीतीनाम्,
-वही, पृ. 159 3. कलमविकलग्रामतानम्"
-वही, पृ 186 4. विस्तार्यन्ते प्रयोगायमूर्च्छना शेषसंश्रया। तानास्तेऽप्यूनपंचाशत् सप्तस्वरसमुद्भवा ।'
- तिलकमंजरी, पराग टीका, भाग, 3 पृ. 41 5. तिलकमंजरी, पृ. 177 6. विशेषतश्चित्रकर्माणि वीणावाचे च प्रवीणताप्राप। -तिलकमंजरी पृ. 79 7. वही, पृ 162 8. वही, पृ. 166
किं पुनश्विन्तकाग्रतातिशयनिर्वर्तनीयचित्रम। -वही, पृ. 171 10. त्वंहि चित्रकर्मणि परं प्रवीणा । ... ..."चित्रकौशलदर्शनव्याजेन दर्शय
निसर्गसुन्दराकृतीनाभवनिगोचरनरेन्द्रप्रदारकाणां यथास्वमङ्कितानि नामामिर्यथावस्थितानि विद्धरूपाणि ।
-वही, पृ. 170 11. "द्वीपान्तरमहाराज"चित्रफलकारोपितो विडस्पो" कुमारः ।
-वही, पृ. 163