________________
84
तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
प्रशस्त रेखाओं से युक्त ललाट का वर्णन किया गया है। छत्र के आकार के सिर का उल्लेख हुआ है।
__मेघवाहन चक्रवर्ती के चिह्नों से युक्त था तथा उसका वक्षस्थल श्रीवृक्ष से चिहिन्त था । दण्ड, अंकुश, चक्र, धनुष, श्रीवत्स, वन तथा मत्स्य ये चक्रवर्ती के चिह्न कहे गये हैं
दण्डाकुशो चऋचापो श्रीवत्सः कुलिशं तथा ।
मत्स्यश्चतानि चिह्नानि कथ्यन्ते चक्रवतिनाम् ॥4
हरिवाहन चक्रवर्तित्व के समस्त लक्षणों से युक्त था। दाहिने हाथ में कमल, शंख तथा छत्र के चिह्न प्रशस्त माने गये हैं। अंगूठे के मूल की स्थूल रेखाओं से संतान विषयक ज्ञान प्राप्त होने का वर्णन किया गया है। तिलक. मंजरी के पदचिन्हों का अत्यन्त सुन्दर वर्णन किया गया है। उसकी पादपंक्ति शास्त्रोक्त प्रमाणयुक्त तथा कोमलावयवों से युक्त थी। वह कमल, चक्र, चामर तथा छत्रादि के सदृश निरन्तर गम्भीर प्रशस्त रेखाओं से अंकित थी। साहित्यशास्त्र
तिलकमंजरी में साहित्यशास्त्र सम्बन्धी अनेक विषयों का उल्लेख प्राप्त होता है। प्रसाद, ओज तथा माधुर्य, काव्य के इन तीन गुणों का उल्लेख किया गया है । सुकवि की वाणी रीत्यानुसार प्रसाद गुण से युक्त कही गई है । ओज
1. अतिप्रशस्तललितललाटलेखाक्षरम्"" -तिलकमंजरी, पृ. 51 2. छत्रसदृशाकार...
-वही, पृ. 51 3. (क) चक्रवतिलक्षणः स खलु"राजा मेघवाहनः, -वही, पृ. 39 (ख) पृथुश्रीवृक्षलांछिते वक्षसि..."
-वही, पृ. 39 हर्षचरित, रंगनाथ की टीका स्फुटविभाव्यमानसकलचक्रवर्तिलक्षणाम्"." तिलकमंजरी, पृ. 77 श्लाघ्यशतपत्रशंखातपत्रलक्षणो दक्षिणपाणिः ।
-वही, पृ. 175 7.. (क) अंगुष्ठकादिप्रश्नं प्रति प्रवर्तयता.
-वही, पृ. 64 (ख) गृहीतवामकरतलांगुष्ठमूलस्थूलरेखासंख्यानाम्..
-वही, पृ. 64 आगमोक्तप्रमाणप्रतिपन्नसकलसुकुमारावयवामब्जचक्रचामरच्छत्रानुकाराभिरनल्पबहुमिरविच्छिन्ननिम्नाभि "प्रशस्तलेखाभिः...
-तिलकमंजरी, पृ. 245 9. सुकविवाचमिव मार्गानुसारिप्रसन्नदृष्टिपाताम्...
-वही, पृ. 24
8.