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धनपाल का जीवन, समय तथा रचनायें
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(6) तिलकमंजरी के आधार पर रामन के पुत्र पल्लीपाल धनपाल ने वि०सं० 1261 अर्थात् 1205 ई० में 1200 पद्यों का तिलकमंजरीसार लिखा ।।
(7) सोमेश्वर कवि ने अपनी कीतिकोमुदी में धनपाल की प्रशंसा की है।
(8) संघतिलकसूरि ने तिलकाचार्य विरचित सम्यकत्व-सप्तति पर अपनी टीका में तिलकमंजरी कथा की प्रवरतरुणी से तुलना करते हुए उसे उत्तम कथा कहा है।
__परवर्ती कवियों के इन उद्धरणों से धनपाल का समय ग्यारहवीं शती के उत्तरार्ध से पूर्व सिद्ध हो जाता है । अतः धनपाल के काल की अतिम सीमा ग्यारहवीं शती का पूर्वार्ध है ।
धनपाल ने पाइयलच्छीनाममाला की रचना ई. 972 में की तथा श्री सत्यपुरीय-महावीर-उत्साह ई. स. 1026 के पश्चात् लिखा गया। यदि पाइयलच्छी की रचना के समय धनपाल की आयु 20 वर्ष मानी जाय, तो सत्यपुरीयमहावीर-उत्साह की रचना के समय उसकी आयु 75 वर्ष लगभग होगी। तिलकमंजरी की रचना भोज के समय में की गई, अतः यह लगभग 1020 ई. के लगभग लिखी गई, ऐसा अनुमान किया जा सकता है । इस प्रकार धनपाल का जीवन ई. 950-1030 के मध्य रहा होगा।
अन्त में यह कहा जा सकता है कि धनपाल वह भाग्यशाली कवि था, जिसने चार परमार राजाओं, सीयक, मुंज, सिन्धुराज तथा भोज के राज्याश्रय में एक लम्बे समय तक साहित्य-सृजन किया। अतः धनपाल का समय दशम् शती का उत्तरर्द्ध तथा ग्यारहवीं शती का पूर्वाद्धं निर्धारित हो जाता है ।
1. नमः श्रीधनपालाय येन विज्ञानगुम्फिता।
कं नालड्कुरुते कर्णस्थिता तिलकमंजरी ।।3।। Kansara, N.M., Tilakmanjarisara of Pallipala Dhanapala,
p. 1 Ahmedabad, 1969. 2. वचनं धनपालस्य, चन्दनं मलयस्य च । सरसं हृदि विन्यस्य कोऽभून्नाम न निव॑तः ।
- -कीति कोमुदी, 1116 सालंकारा लक्खण सुच्छंदया महरसा सुवन्नरूइ । कस्स न हारइ हिययं कहुत्तमा पवरतरुणीवव ॥ -उद्धृत, देसाई मोहनचन्द दलीचन्द, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० 201