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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
के साथ युद्ध में समरकेतु के पराजित होकर दीर्घ निद्रा प्राप्त करने का समाचार सुनती है तथा जिसे सुनकर वह विषैला फल खा लेती है, 1 इसके पश्चात् की घटनायें गन्धर्वक से प्राप्त होती है । 2
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चतुर्थ कथा मोड़
गज द्वारा नायक हरिवाहन का अपहरण, यह कथा का महत्वपूर्ण चतुर्थ मोड़ है । इसका उद्देश्य हरिवाहन का प्रत्यक्ष रूप में तिलकमंजरी के विद्याधर प्रदेश में प्रवेश करना है । दूसरी ओर समरकेतु को हरिवाहन का अन्वेषण करते हुए छ: मास से भी अधिक व्यतीत हो जाते हैं । इस अवधि के मध्य हरिवाहन की कुशलता का समाचार भी मिल जाता है । खोजते खोजते वह एकशृंग पर्वत पहुँचता है, जहां अदृष्टसरोवर के निकट, एक दिव्यायतन देखता है । वहां उसकी भेंट गन्धर्वक से होती है । गन्धर्वक उसे हरिवाहन के पास ले जाता है । इस प्रकार इसी कथा मोड़ में दोनों मित्र हरिवाहन के गज अपहरण से विमुक्त भी हो जाते हैं और पुनः मिल भी जाते हैं, किन्तु इस वियोग और समायोग के बीच छ: मास से भी अधिक समय व्यतीत हो जाता है और हरिवाहन के जीवन में महत्वपूर्ण घटनायें घट जाती हैं। इसी अवधि में घटित घटनाओं का पूर्ण विवरण आगे हरिवाहन अपने मुख से देता है ।
पंचम कथा मोड़
कथा का यह अन्तिम तथा महत्वपूर्ण मोड़ है। इसमें गज- अपहरण से लेकर विद्याधर चक्रवर्तित्व प्राप्ति पर्यन्त का कथानक हरिवाहन अपने मुख से समरकेतु तथा अन्य मित्रों को सुनाता है । इस वर्णन में चार अन्तर्कथायें भी आ गयी हैं - ( 1 ) मलयसुन्दरी की कथा (2) गन्धर्वक की कथा (3) अनंगरति की कथा (4) तथा महर्षि द्वारा मुख्य पात्रों के पूर्व जन्म की कथा का उद्घाटन । यहां से सारी कथा भूतकाल में चली जाती है । यह सम्पूर्ण वृत्तान्त हरिवाहन द्वारा उत्तम पुरुष में वर्णित है ।
सर्वप्रथम तिलकमंजरी तथा हरिवाहन का प्रथम समागम होता है, किन्तु तिलकमंजरी मुग्धा नायिका होने से कोई उत्तर दिये बिना ही लौट जाती है । उसकी कामावस्था का वर्णन बाद में चारायण कंचुकी मलयसुन्दरी से करता है ।
1.
2.
3.
वही, पृ. 334
वही, पृ. 378 - 384
वही, पृ. 187