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तिलकमंजरी की कथावस्तु का विवेचनात्मक अध्ययन
प्रभुदास बेचरदास पारेख ने इसका गुजराती भाषा में संक्षिप्तीकरण किया है । 1
इनसे प्रमाणित होता है कि तिलकमंजरी के कथानक ने तत्कालीन समय से लेकर इस शताब्दी पर्यन्त विद्वज्जनों के हृदय में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया था ।
तिलक मंजरी के टीकाकार
तिलकमंजरी ग्रन्थ पर लिखित दो टीकाएं अब तक प्रकाश में आयी हैं(1) शान्तिसूरी का टिप्पण, (2) विजयलावण्यसूरि की पराग नामक टीका । शान्तिसूरि (बारहवीं शती)
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श्री शान्तिसूरि पूर्णतल्लगच्छ से सम्बन्धित थे । 2 इन्होंने तिलकमंजरी पर 1050 श्लोक प्रमाण टिप्पण की रचना की है । यह विजयलावण्यसूरीश्वरज्ञानमंदिर से तीन भागों में अपूर्ण रूप से प्रकाशित है । ये शांतिसूरी, श्री वर्धमानसूरि के शिष्य थे तथा इनका आविर्भाव विक्रम की बारहवीं शताब्दी का पूर्वार्ध माना जाता है । इन्होंने चन्द्रदूत, मेघाभ्युदय, वृन्दावनयमकम्, राक्षसमहाकाव्यम् घटखरकाव्यम्, इन पांच यमकमय काव्यों पर अपनी वृत्ति लिखी है । टिप्पण के प्रारम्भ में ये लिखते हैं
तिलकमं जरीनाम्न्याः कथायाः पवषद्धतिम् । श्लेषमंगादिवेषम्यं यथामति ||2||
बिवृणोमि
2.
1. प्रभुदास, बेचरदास पारेख (स०), तिलकमंजरीकथासारांश (गुजराती) हेमचन्द्राचार्य ग्रन्थावली नं० 8, पाटण श्री शान्तिसूरिरिह श्रीमति पूर्णतल्ले,
गच्छे वरो मतिमतां बहुशास्त्रवेत्ता । तेनाऽमलं विरचितं बहुधा विमृश्य,
संक्षेपतो वरमिदं बुध । टिप्पितं भोः ॥
- पाटण जैन भंडार कैटलाग, भाग 1, गायकवाड़ ओरियन्टल सीरीज नं० 76 में प्रकाशित, पृ० 87
कापड़िया, हीरालाल रसिकदास, जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास, भाग 2,
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3.
- शान्तिसूरि विरचित टिप्पण
4. विजयलावण्य सूरीश्वरज्ञानमंदिर, बोटाद भाग 1, 2, 3 वि० सं० 2008,
2010, 2014
5. जैसलमेर भंडारग्रन्थ सूची, अप्रसिद्ध, पृ० 58, 59