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धनपाल का पाण्डित्य
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शिव के द्वारा अर्जुन की परीक्षा के लिये किरात का वेश धारण किया गया था। इस कथा का उल्लेख पृ. 239 तथा 36 पर प्राप्त होता है इसी के आधार पर शिव को क्रीड़ाकिरात कहा गया है (पृ. 236)। दक्ष के यज्ञ में पति का अपमान होने पर सति ने अपनी आहुति दे दी, तब क्रोधित होकर शिव ने अपने शरीर की भस्म से दक्ष के यज्ञ का नाश कर दिया। इस कथा का उल्लेख पृ. 395 पर प्राप्त होता है। शिव के शरीर पर भस्म मलने का उल्लेख पृ. 239 पर किया गया है। शिव तथा पार्वती के अर्धनारीश्वर रूप का वर्णन किया. गया है।
तिलकमंजरी में शिव के निम्नलिखित 23 नाम आये हैं शंकर (313), रुद्र, (5), हर (5, 101, 266, 225), स्थाणु (6), शूलपाणि (12), महाभैरव (14, 84), शाकमौलि (16), विशालाक्ष (23), ईशान (23, 162, 276), विषभाक्ष (24), श्यम्बक (43, 137, 203, 211), शूलायुध (397), गजदानवारि (87), खण्डपरशु (87, 239). मृगांकमौलि (16), धूर्जटि (104, 121), अन्धकाराति (120), शिव (198), ईश (800) नीललोहित (222), कण्ठेकाल (234), क्रीड़ाकिरात (239), गिरिश (247)। शेषनाग
यह नागों का राजा है। फणिराज से मन्दरपर्वत के मध्यभाग को बांधकर समुद्र का मन्थन किया गया था (पृ, 204)। भुजंगराज का मन्थन के श्रम से थकित होना (पृ. 203), शेषाहि (पृ. 23), शेषनाग द्वारा पृथ्वी को अपने फण पर धारण करने का उल्लेख है (पृ. 54)।
दार्शनिक सिद्धान्त धनपाल वैदिक एवं पौराणिक साहित्य के अतिरिक्त दर्शनशास्त्र में भी पूर्णतः निष्णात थे। यह तिलकमंजरी में प्रयुक्त अनेक दार्शनिक उपमाओं, उत्प्रेक्षाओं तथा अन्य उल्लेखों आदि के विवेचन से ज्ञात होता है। सांख्य
धनपाल ने सांख्य के पुरुष एवं प्रकृति, इन दो प्रमुख तत्वों का एक उपमा के प्रसंग में निरूपण किया है। सांख्यमतानुसार अविद्या के कारण प्रकृति
1. दक्षाध्वरध्वंसिभस्मांगभास्वरेण.....
-वही, पृ. 395 2. (क) ..."शम्भोरिवार्धनारीश्वरस्थ,
-वही, पृ. 253 (ख)""शरीराधेन लब्धप्रियांगसँगामचलकन्याम्... -वही, पृ. 313
(ग) भवानीव शंभोद्वितीयापि भर्तुरेकं शरीरमभवत् । -वही, पृ. 263 3. दर्शनादेव चासो जन्मसहभुवं पुमानिव सांपरिकल्पितः प्रकृतिममुंचत् ।।
-तिलकमंजरी, पृ. 278