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धनपाल का पाण्डित्य
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व्याकरण
'व्याकरणशास्त्र का उल्लेख किया गया है। वैयाकरण को शब्दशास्त्रकार कहा गया है तथा व्याकरण को शब्द-विद्या ।' शब्द-विद्या को सभी विद्याओं में श्रेष्ठ कहा गया है। समस्त पद का उल्लेख प्राप्त होता है। पदों के विग्रह के विषय में कहा गया है। स्वर तथा व्यंजन का उल्लेख प्राप्त होता है। हस्व तथा दीर्घ स्वर एवं व्यंजनों का उल्लेख किया गया है। उपसर्ग सहित धातु कही गई है । लिंगत्रय पुल्लिग, स्त्रीलिंग तथा नपुंसकलिंग शब्दों का प्रयोग हुआ है। बहुवचन पद का प्रयोग किया गया है ।10 ज्योतिष
- ज्योतिष विद्या के लिए निमित्तशास्त्र शब्द का प्रयोग हुआ है ।11 ज्योतिषी को मैमित्तिक कहा गया है।12 हरिवाहन के राज्याभिषेक के प्रसंग में पुरुदंश नामक राजनैमित्तिक का उल्लेख आया है ।13 ज्योतिष शब्द भी प्रयुक्त हुआ है । ज्योतिषी के लिए अन्य शब्द सांवत्सर (263), गणक (76) मोहूर्तिक (95,131), ज्योतिर्गणितविद्भिः (115) प्रयुक्त हुए हैं । ज्योतिष के मुहूर्त (75) तिथि (75), वार (75), करण (75), ग्रह (75), लग्न (115), कला (114) आदि पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग हुआ है । ग्रहों की उच्च स्थिति, ग्रह-बल, 1. ..."लिपिविशेषदर्शन......."ध्याकरणादीनि शास्त्राणि -वही, पृ. 79 2. वही, पृ. 134, 159 शब्दविद्याभिव विद्यानाम्,
-तिलकमंजरी, पृ. 159 समस्तानेकपदा अप्याजस्वितां विजहुः,
-वही, पृ. 15 5. पदानां विग्रह।,
-वही, पृ. 15 6. अस्वरवणीं अपि परं न व्यंजनमशिश्रियन्त शत्रवः -वही, पृ. 15
शब्दशास्त्रकाररिव विहितहस्वदीर्घव्यंजनकल्पन::... -वही, पृ. 134 धातूनां सोपसर्गत्वम्,
-वही, पृ. 15 शब्द इव संस्कृतोऽपि प्राकृतबुद्धिमाघते । प्रसिद्धपुंभावोऽपि नपुंसकतया व्यवहियते । सर्वदा स्त्रीलिंगवृत्तिरपि परार्थे प्रवर्तमानः पुंस्त्वमर्जयति ।
-वही, पृ. 406 10. बहुवचनप्रयोगः पूज्यनामसु न परप्रयोजनंगीकरणेषु, -वही, पृ. 260 11. वही, पृ. 143, 263 12. वही, पृ.64 13. पुरुदंशा नाम राजनैमित्तिको राजधानीपुरप्रवेशाय शनकय॑जिज्ञपत् ।
-तिलकमंजरी, प्र.403 14. प्रयाणशुद्धिमिव प्रष्टुमुपससर्प परिणतज्योतिषम् .... -वही, पृ. 197
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