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तिलकमंजरी, एक सांस्कृति अध्ययन
वैदिक धर्म के अनुसार पुत्रहीन व्यक्ति पुत् नामक नरक में जाता है । 1 तिलकमंजरी में इसका उल्लेख किया गया है । 2
वेदांग
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शिक्षा
वेद का घ्राण शिक्षा को कहा गया है । इसमें वर्णों के उच्चारणादि के के सम्बन्ध में विवेचन किया गया है । शिक्षा में उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित तीन प्रकार के स्वर कहे गये हैं । तिलकमंजरी में उदात्त तथा स्वरित स्वरों का उल्लेख किया गया है । 3
कल्प
तिलक मंजरी में यज्ञ सम्बन्धी अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं। मेघवाहन के राजकुल की यज्ञशालाओं में सान्तातिक अनुष्ठान किये जा रहे थे । मध्यान्हकाल में वैश्चदेवयज्ञ करने का उल्लेख मिलता है । प्रातःकाल में अग्निहोत्र यज्ञ का वर्णन किया गया है ।" अग्निहोत्र तथा वैश्वदेवाग्नि का उल्लेख आया है । 7 यज्ञ में 'प्रयुक्त अरणि अर्थात् निर्मन्थकाष्ठ विशेष का उल्लेख किया गया है । "
छन्द
बृहती तथा जगती नामक बंदिक छन्दों का उल्लेख किया गया है । छन्दशास्त्र के लिए छन्दोविचितिशास्त्र नाम दिया गया है । छन्दों में उपजाति छन्द को सर्वोत्कृष्ट माना है । TO इसके अतिरिक्त तिलकमंजरी में प्रयुक्त विभिन्न छन्दों से धनपाल के इस शास्त्र से सम्बन्धित ज्ञान का पता चलता है ।
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पुनानो नरकाद्यस्मात् पितरं त्रायते सुतः तस्मात् पुत्र इति ख्यातः इति वैदिकधर्मेण ।
- तिलकमंजरी पराग-टीका, भाग 1, पृ. 80 .....आत्मानं त्रायस्व पुनाम्नो नारकात् 'इति सोत्प्रासं शासितस्येव गुरुकृतेन श्रुतिधर्मेण ।
- तिलकमंजरी, पृ. 21
उदात्तेनापि स्वरितेन ..
आरब्धनिविच्छेदसान्तानिककर्मकाम्यक्रतुशालम् " गृहाभिमुखतरूशाखासीनवाय सकुलावलोकितबलिषुहूयमानेषुवं श्वदेवानले षु....
- वही, पृ. 13 - वही, पृ 63
- तिलकमंजरी, पृ. 68 - वही, पृ. 151
- वही, पृ. 201 तथा पृ. 68
प्रसृततापसाग्निहोत्रधूमान्धकारे''''।
""अग्न्याहिताग्नेरिवा ।
वही, पृ. 201
छन्दोविचितिशास्त्रमिव बृहत्या जगत्या भ्राजितम् ...
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10. उपजातिमिव छन्दोजातीनाम् .........
- तिलकमंजरी, पृ. 115 वही, पृ. 159