________________
तिलकमंजरी की कथावस्तु का विवेचनात्मक अध्ययन
39
मूछित हो गई। दूसरे दिन वे दोनों बिना कोई कारण बताए तीर्थयात्रा के लिये निकल पड़ी। मार्ग में उन्हें एक त्रिकालदर्शी महर्षि के दर्शन हुए जिनका धार्मिक प्रवचन सुनने के लिए वे वहीं ठहर गई । एक विद्याधर कुमार द्वारा प्रश्न किये जाने पर उन्होंने उन दोनों के पूर्वजन्म का रहस्योद्घाटन किया।
महर्षि ने कहा-'सौधर्म नामक देवलोक में ज्वलनप्रभ नामक वैमानिक अपनी पत्नी प्रियंगुसुन्दरी के साथ निवास करता था। जब उसकी दिव्यायु क्षीण प्रायः हुई तो उसे स्वर्गीय वैभव से विरक्ति हो गई। तब वह जन्मान्तर के लिए बोधि-लाभ हेतु तीर्थयात्रा करने के लिए स्वर्ग से चला। मार्ग में उसकी भेंट शक्रावतार तीर्थ में राजा मेघवाहन से हुई, जिसे उसने अपनी पत्नी का हार उपहार में दे दिया। इसके पश्चात् वह अपने मित्र सुमाली के पास नन्दीश्वर द्वीप में आया और उसे भी जिनमतानुसार जीवादि तत्त्वों का भेद बताकर भगवान् जिन के पवित्र मार्ग से अवगत कराया। तत्पश्चात् संसार के सभी पवित्र स्थानों का भ्रमण करके अपनी देह का त्याग कर दिया। दूसरे जन्म में यही ज्वलनप्रभ राजा मेघवाहन का पुत्र हरिवाहन हुवा। दूसरी ओर पति के इस प्रकार विना सूचित किये चले जाने से दुःखी होकर प्रियंगुसुन्दरी उसे खोजने के लिये जम्बूद्वीप में आई । जहां उसकी भेंट प्रियम्वदा से हुई, जो स्वयं अपने प्रिय सुमाली के वियोग में व्याकुल थी। दोनों सखियां जयन्तस्वामि के पास पहुंची, जिसने उन्हें कहाकि उन दोनों का अपने-अपने प्रिय से एकशृग और रत्नकूट पर्वत पर समागम होगा और दिव्य आभूषण की प्राप्ति उसका कारण होगी।
यह सुनकर प्रियंगुसुन्दरी एक शृग पर्वत पर पहुंची और अपनी दिव्य शक्ति से जिनायतन का निर्माण करके पतिसमागम की प्रतीक्षा में दिन व्यतीत करने लगी। इसी प्रकार प्रियम्बदा भी रत्नकूट पर्वत पर जिनेन्द्रालय का निर्माण कर पति-आगमन का प्रति-पालन करने लगी।
एक दिन भगवती श्री प्रियंगुसुन्दरी के पास प्रियम्बदा का संदेश लेकर आई कि प्रियम्वदा अपना अंत समय निकट जानकर तथा प्रिय-समागम के प्रति निराश होकर, सर्वज्ञ के वचनों का विश्वास खो चुकी है, अत: उसने अपने दिव्यायतन की रक्षा का भार तुम्हें सौंप दिया है और यह दिव्य अंगुलीयक मुझे प्रदान कर दी है । भगवती श्री ने प्रियंगुसुन्दरी का भी अत समीप ही जानकर दोनों जिनायतनों की रक्षा का उत्तरदायित्व अपने यक्ष महोदर को सौंप दिया। इस प्रकार प्रियंगुसुन्दरी ने विद्याधर नरेश चक्रसेन की पुत्री तिलकमंजरी के रूप में जन्म लिया और प्रियम्वदा कांची नरेश कुसुमशेखर की पुत्री मलयसुन्दरी के